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श्रीमदभागवत गीता को अपने जीवन में करें धारण : यति नरसिंहानंद गिरि

गुडग़ांव: श्रीमदभागवत गीता के आधार पर श्रीकृष्ण कथा का आयोजन चल रहा है। जिसमें श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरि महाराज श्रीकृष्ण से जुड़े प्रसंगों का वर्णन भी कर रहे हैं। श्रीमदभागवत गीता के 18वें अध्याय के 5वें स्लोक में योगेश्वर
श्रीकृष्ण के कथन का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि किसी को भी किसी भी परिस्थिति में यज्ञ दान और तप इन तीनों कर्मों का परित्याग नहीं करना चाहिए। क्योंकि यज्ञ दान और तप तो ऋषि मुनियों और विद्वत जनों को भी पवित्र करते हैं। इन तीनों कर्मों का परित्याग करने से प्रकृति और समाज में संतुलन समाप्त हो जाता है और विषमता बढ़ जाती है। विषमताओं के बढऩे से समाज अधोगति को प्राप्त होता है जो संपूर्ण समाज के लिए घातक होता है।

उन्होंने कहा कि आज हिंदू समाज के पतन का सबसे बड़ा कारण हम सबका यज्ञ दान और तप से दूरी ही है। हम अपने धर्म के मूल नियमों को समझने और उनका पालन करने में असमर्थ रहे हैं। उसी का परिणाम है कि एक समुदाय के रुप में हम संपूर्ण विश्व में सबसे अधिक कमजोर और असुरक्षित हैं। उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा कि आज स्थिति यह है कि हमारी धार्मिक भावनाओं को अपमानित करने और उन पर आघात करने को देश में एक फैशन के रुप में देखा जाता है। यदि सनातनधर्मी इस पर उचित चिंतन नहीं करेंगे तो परिणाम बहुत भयावह हो सकते हैं। इससे बचने के लिए एक मात्र उपाय है कि श्रीमदभागवत गीता को अपने जीवन में धारण करें। समाजसेवी शशि चौहान व सतेंद्र चौहान ने विधिवत रुप से पूजा-अर्चना कर कथा का प्रारंभ कराया। कथा में साधु-संतों के अतिरिक्त समाजसेवी बृजमाहेन सिंह, बाबू मंगल सिंह, कौशल कुमार, सनोज शास्त्री, कृष्ण वल्लभ भारद्वाज, राम सिंह, अंकुर जावला आदि शामिल रहे।

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