गुडग़ांवI पितृों को तृप्त करने के लिए श्राद्ध का आयोजन हर वर्ग के परिजन अपनी सामथ्र्यनुसार कर रहे हैं, ताकि उनके पितृ तृप्त होकर स्वर्ग लोक वापिस जा सकें। विष्णु पुराण के तृत्यांश अध्याय 14 व वराह पुराण अध्याय 13 में उल्लेख है कि हर किसी को अपने पितृों का
श्राद्ध अपनी सामथ्र्यनुसार करना चाहिए। पंडित डा. मनोज शर्मा का कहना है कि यदि श्राद्ध कर्म करने के लिए पर्याप्त धन नहीं है तो व्यवस्था कर श्राद्ध करना चाहिए। यदि व्यवस्था नहीं हो रही है तो पितृों के उद्देश्य से पृथ्वी पर भक्ति विनम्र भाव से 7-8 तिलों से जलांजलि ही दे दें। पंडित जी का कहना है कि यदि यह भी संभव नहीं है तो कहीं से चारा की व्यवस्था कर गौमाता को खिला दें। यदि यह भी संभव नहीं है तो सूर्य व दिग्पालों से आग्रह करें कि मेरे पास श्राद्ध कर्म के योग्य न धन-संपत्ति है और न ही कोई अन्य सामग्री। इसलिए मैं अपने पितृों को प्रणाम करता हूं कि वे मेरी भक्ति से ही तृप्ति लाभ करें। पंडित जी का कहना है कि श्राद्ध वर्ष में एक ही बार आते हैं, अपने पितृों को तृप्ति के लिए व्यवस्था करनी ही चाहिए।
अपनी सामथ्र्य के अनुसार करना चाहिए पितृों का श्राद्ध, विष्णु पुराण में है उल्लेख : पंडि़त मनोज शर्मा
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