गुडग़ांव, हिन्दू धर्म में श्राद्ध का बहुत महत्व है। कहा जाता है कि मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी है। यदि किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण न किया जाए तो उसे धरती से मुक्ति नहीं मिलती और वह आत्मा के रूप में संसार में ही रह जाता है। इसलिए आत्मा की शांति के लिए परिजन प्रति वर्ष पूरे विधि-विधान के अनुसार श्राद्ध करते हैं। इस बार आज रविवार से श्राद्ध पक्ष शुरु हो रहे हैं। ब्रह्म पुराण में भी कहा गया है कि जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितृों के नाम उचित विधि की ओर से ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दी जाए वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के माध्यम से पितृों को तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है। पिण्ड रूप में पितृों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है। इसी के तहत 15 दिन के लिए श्राद्ध तर्पण किया जाता है। श्राद्ध 21 सितम्बर तक चलेंगे। ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक पूरा पखवाड़ा श्राद्ध कर्म करने का विधान है। इसलिए अपने पूर्वजों को के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के इस पर्व को श्राद्ध कहा जाता है।
क्या है पितृ पक्ष का महत्व
धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है कि देवपूजा से पहले जातक को अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए। पितरों के प्रसन्न होने पर देवता भी प्रसन्न होते हैं। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में जीवित रहते हुए घर के बड़े बुजूर्गों का सम्मान और मृत्योपरांत श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। इसके पीछे यह मान्यता भी है कि यदि विधिनुसार पितरों का तर्पण न किया जाए तो उन्हें मुक्ति नहीं मिलती और उनकी आत्मा मृत्यु लोक में भटकती रहती है।
किस दिन करें पूर्वजों का श्राद्ध
वैसे तो प्रत्येक मास की अमावस्या को पितरों की शांति के लिए पिंड दान या श्राद्ध कर्म किए जा सकते हैं लेकिन पितृ पक्ष में श्राद्ध करने का महत्व अधिक माना जाता है। पंडितों का कहना है कि पितृ पक्ष में किस दिन पूर्वजों का श्राद्ध करें इसके लिए शास्त्र सम्मत विचार यह है कि जिस पूर्वज, पितर या परिवार के मृत सदस्य के परलोक गमन की तिथि याद हो तो पितृपक्ष में पडऩे वाली उक्त तिथि को ही उनका श्राद्ध करना चाहिए। यदि देहावसान की तिथि ज्ञात न हो तो आश्विन अमावस्या को श्राद्ध किया जा सकता है। इसीलिए इसे सर्वपितृ अमावस्या भी कहा जाता है। यह भी मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितृों को आजाद कर देते हैं ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।
श्राद्ध में कौओं का महत्व
कौए को पित्रों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितृ कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वे रुष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है।