गुडग़ांव। अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध हिन्दी के कवि, निबन्धकार तथा सम्पादक थे। उन्होंने हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति के रूप में कार्य किया। वह सम्मेलन द्वारा विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किए गए थे। उन्होंने खड़ी बोली हिंदी का पहला महाकाव्य लिखा जिसे मंगलाप्रसाद पारितोषिक से सम्मानित किया गया था। उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए साहित्यकार डा. घमंडीलाल अग्रवाल ने कहा कि उनका जन्म 15 अप्रैल 1865 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के निजामाबाद में हुआ था। उन्हें संस्कृत, उर्दू, फारसी, हिंदी आदि का पर्याप्त ज्ञान था। उन्होंने सरकारी नौकरी भी की और सेवानिवृत होने के बाद उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में अवैतनिक शिक्षक के रुप में कई वर्षों तक अध्यापन कार्य भी किया।
उन्होंने साहित्य सेवा में काफी ख्याति अर्जित की थी। डा. अग्रवाल ने कहा कि उनकी रचनाओं में प्रिय प्रवास सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह हिंदी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है। इसे मंगलाप्रसाद पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। उन्होंने ठेठ हिंदी का ठाठ, अधखिला फूल, हिंदी भाषा और साहित्य का विकास आदि ग्रंथ-ग्रंथों की भी रचना की थी। उनके उल्लेखनीय ग्रंथो ंमें प्रिय प्रवास, कवि सम्राट, वैदेही वनवास, पारिजात, रस-कलश, अधखिला फूल आदि शामिल हैं। रस-छंद-अलंकार को भी उन्होंने अपनी रचनाओं में समुचित स्थान दिया। उन्होंने कहा कि हरिऔध ने गद्य और पद्य दोनों ही क्षेत्रों में हिंदी की सेवा की। वह द्विवेदी युग के प्रमुख कवि माने जाते है। 16 मार्च 1947 को उनका निधन हो गया था। डा. अग्रवाल ने साहित्य के क्षेत्र में कार्य कर रहे साहित्यकारों से आग्रह किया कि वे अयोध्या सिंह उपाध्याय के जीवन से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ें और साहित्य के क्षेत्र में नाम कमाएं।
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