ज्योतिषाचार्यों का है कहना, 7 मार्च को ही होगा होलिका दहन
भद्रा काल में नहीं किया जाता होलिका दहन
गुडग़ांव। भारतीय संस्कृति में होली के त्यौहार का विशेष महत्व है। क्योंकि इस समय प्रकृति में उत्साह, उमंग और ऋतु परिवर्तन के कारण बदलाव तथा खेतों में लहलहाती फसलों का पक कर खड़ा होना। सभी के दिलों में एक नई ऊर्जा और उत्साह प्रदान करता है साथ ही बसंत ऋतु का आगमन, जिसमें न ही सर्दी होती है और न ही गर्मी होती है और वृक्षों पर पुराने पत्तों का टूटकर नए पत्तों का आना प्रकृति के सौंदर्य में चार चांद लगा देता है। इतने सुंदर वातावरण में फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णमासी को होली का पावन पर्व मनाया जाता है। यह पर्व भक्ति, आस्था, श्रद्धा, विश्वास को बढ़ाने के साथ-साथ आध्यात्मिक रूप से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
होलिका दहन के पर्व को लेकर भी आमजन में संशय बना हुआ है कि होलिका दहन 6 मार्च को करें या फिर 7 मार्च को। ज्योतिषाचार्या पंडित डा. मनोज शर्मा कहना है कि 6 मार्च यानि कि आज सोमवार कोचतुर्दशी तिथि शाम को 4 बजकर 17 मिनट पर समाप्त होकर पूर्णमासी तिथि प्रारंभ हो जाएगी जो अगले दिन 7 मार्च, मंगलवार को शाम 6 बजकर 9 मिनट तक रहेगी। शास्त्रों में उल्लेख है कि ऐसी स्थिति में यदि पूर्णमासी तिथि 2 दिन रहे तो पूर्व दिन को छोडक़र अगले दिन होलिका दहन करना चाहिए।
6 मार्च को इसलिए भी नहीं किया जा सकता, क्योंकि भद्रा शाम को 4 बजकर 17 मिनट से प्रारंभ होकर अगले दिन सुबह 4 बजकर 17 मिनट तक रहेगी। साथ ही चंद्रमा सिंह राशि में होने के कारण भद्रा का वास मृत्यु लोक में होगा, जो कि अत्यंत अशुभ फलदायक है। ऐसी स्थिति में 6 मार्च को होलिका दहन करना शास्त्र सम्मत नहीं हो सकता। उनका कहना है कि कुछ आचार्यों का मत है कि 6 मार्च को ही होलिका दहन करना चाहिए। क्योंकि प्रदोष काल व्याप्त रहते हुए होलिका दहन करना शास्त्र सम्मत है लेकिन इसमें भी एक गंभीर समस्या यह है कि भद्रा का वास मृत्यु लोक में है। साथ ही भद्रा के मुख की 5 घटी तथा कंठ की 2 घटी सभी कार्यों में विशेषकर त्याज्य होती हैं।
7 मार्च, मंगलवार को ही होगा होलिका दहन
ज्योतिषाचार्य का कहना है कि मंलवार को पूर्णिमा तिथि शाम 6 बजकर 9 मिनट तक विद्यमान रहेगी। शास्त्रों में भी उल्लेख है कि सूर्योदय के पश्चात यदि कोई भी तिथि 3 घटी तक विद्यमान रहे तो उसे पूरे दिन मानना चाहिए। अत: पूर्णमासी तिथि 3 घटी से भी अधिक विद्यमान रहने के कारण पूरे दिन ही ग्राहय मानी जाएगी। प्रदोष काल भी शाम को 6 बजकर 21 मिनट से 7 बजकर 6 मिनट तक विद्यमान रहेगा। साथ ही भद्रा भी व्याप्त नहीं रहेगी। इसलिए 7 मार्च को शाम 6 बजकर 21 मिनट से लेकर रात्रि 8 बजकर 51 मिनट तक होलिका दहन करना शास्त्र सम्मत होगा और अगले दिन 8 मार्च यानि कि बुधवार को रंगों का पर्व धुलेंडी मनाया जाएगा।
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