बरसाने की लठमार होली है बड़ी प्रसिद्ध
हरियाणा में भाभी द्वारा देवर को सताने की है प्रथा
गुडग़ांव। रंगों का पर्व होली का खुमार लोगों पर चढऩा शुरु हो गया है। बाजारों में रंग-गुलाल व पिचकारियों की दुकानें भी सजनी शुरु हो गई हैं। मिष्ठान भण्डारों पर होली का विशेष व्यंजन गुंजिया ने भी अपनी खुशबू बिखेरनी शुरु कर दी है। शहर के मुख्य सदर बाजार सहित एक दर्जन से अधिक मॉल्स में भी होली पर्व की चहल-पहल शुरु हो चुकी है। रंगों व पिचकारियों की सजी दुकानों से लोगों ने खरीददारी भी शुरु कर दी है। इस पर्व को सभी समुदाय के लोग मिल-जुलकर मनाते हैं और आपसी भाईचारे का परिचय भी देते हैं। रंगों का यह पर्व आगामी 7 मार्च को होलिका तो 8 मार्च को धुलेंंडी में रंग खेलकर मनाया जाएगा। रंगों के इस पर्व को मनाने का उद्देश्य होता है कि जीवन भी रंगों से भर जाए। होली का यह पर्व भारत में नहीं, अपितु पडौसी देश नेपाल में भी धूमधाम से मनाया जाता है।
2 दिन मनाया जाने वाला पर्व है होली
पंडित डा. मनोज शर्मा का कहना है कि यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से 2 दिन मनाया जाता है। लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल आदि फैंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाए जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर लोग गले मिलते हैं। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं।
कई किवदंतियां भी जुड़ी हैं पर्व से
होली के पर्व से अनेक किवदंतियां जुड़ी हुई हैं। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल से वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर भी पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से नाराज होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए थे, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा था। कहा जाता है कि हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में तभी से होली जलाई जाती है।
बरसाने की लठमार होली है बड़ी प्रसिद्ध
भारत में होली का उत्सव अलग-अलग प्रदेशों में भिन्नता के साथ मनाया जाता है। बरसाने की लठमार होली काफी प्रसिद्ध है। बृज की होली देश में ही नहीं, अपितु विदेशियों में भी यह पर्व आकर्षण का केंद्र होता है। बड़ी संख्या में विदेशी भी लठमार होली देखने के लिए बरसाना आते हैं। लठमार होली में पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएं उन्हें लाठियों तथा कपड़े के बनाए गए कोड़ों से मारती हैं। इसी प्रकार मथुरा और वृंदावन में भी 15 दिनों तक होली का पर्व मनाया जाता है।
भाभी द्वारा सताए जाने की प्रथा है हरियाणा में
हरियाणा की धुलेंडी में भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की प्रथा है। बंगाल की दोल यात्रा चैतन्य महाप्रभु के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। महाराष्ट्र की रंग पंचमी में सूखा गुलाल खेलने, गोवा के शिमगो में जलूस निकालने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन तथा पंजाब के होला मोहल्ला में सिक्खों द्वारा शक्ति प्रदर्शन की परंपरा है। तमिलनाडु की कमन पोडिगई मुख्य रूप से कामदेव की कथा पर आधारित वसंतोत्सव है जबकि मणिपुर के याओसांग में योंगसांग उस नन्हीं झोंपड़ी का नाम है जो पूर्णिमा के दिन प्रत्येक नगर-ग्राम में नदी अथवा सरोवर के तट पर बनाई जाती है। दक्षिण गुजरात के आदिवासियों के लिए होली सबसे बड़ा पर्व है, छत्तीसगढ़ की होरी में लोक गीतों की अद्भुत परंपरा है और मध्यप्रदेश के मालवा अंचल के आदिवासी इलाकों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है भगोरिया, जो होली का ही एक रूप है। बिहार का फगुआ जम कर मौज मस्ती करने का पर्व है।
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