गुडग़ांव। अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का आयोजन विभिन्न संस्थाओं द्वारा किया गया। समाजसेवी व वार्ड 16 के भावी पार्षद उम्मीदवार विशाल कटारिया ने कहा कि 17 नवम्बर 1999 को यूनेस्को ने अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को स्वीकृति दी। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है कि विश्व में भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा मिले। वर्ष 2008 को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित करते हुए संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को महत्त्व दिया था। भारतीय संविधान निर्माताओं की आकांक्षा थी कि स्वतंत्रता के बाद भारत का शासन अपनी भाषाओं में चले ताकि आम जनता शासन से जुड़ी रहे और समाज में एक सामंजस्य स्थापित हो और सबकी प्रगति हो सके।
कटारिया ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत प्रगति के पथ पर अग्रसर है। देश में मातृभाषा हिंदी को जो महत्व मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल सका है। अंग्रेजी के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि यह एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। हिंदी केवल बोलचाल की भाषा ही नहीं, बल्कि सामान्य काम से लेकर इंटरनेट तक के क्षेत्र में इसका प्रयोग बख़ूबी हो रहा है। उन्होंने सरकार से भी आग्रह किया है कि शासकीय कार्यालयों में हिंदी का अधिक से अधिक प्रयोग किया जाए। कटारिया का कहना है कि मातृभाषा आदमी के संस्कारों की संवाहक है। मातृभाषा के बिना किसी भी देश की संस्कृति की कल्पना बेमानी है। मातृभाषा हमें राष्ट्रीयता से जोड़ती है और देश प्रेम की भावना उत्प्रेरित करती है। मातृ भाषा आत्मा की आवाज़ है तथा देश को माला की लडिय़ों की तरह पिरोती है। मां के आंचल में पल्लवित हुई भाषा बालक के मानसिक विकास को शब्द व पहला सम्प्रेषण देती है। मातृ भाषा ही सबसे पहले इंसान को सोचने-समझने और व्यवहार की अनौपचारिक शिक्षा और समझ देती है। प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही कराई जानी चाहिए।
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