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दादा साहेब फाल्के को कहा जाता है भारतीय फिल्म उद्योग का पितामह : प्रो. संजय भसीन


गुडग़ांव। दादा साहेब फाल्के भारतीय फिल्मों के निर्माता, निर्देशक व पटकथा लेखक रहे हैं। उनकी प्रथम फिल्म 1913 में राजा हरिशचंद्र प्रदर्शित हुई थी। जिसे भारत की पहली फिल्म होने का सौभाग्य प्राप्त है। इस फिल्म को देश की पहली पूर्ण लंबाई वाली फीचर फिल्म के रुप में जाना जाता है। दादा साहब भारतीय सिनेमा के जनक थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल देशवासियों में उन्होंने राष्ट्रवादी भावना को जागृत कर इस आंदोलन को तेज गति भी दी थी। केंद्र सरकार द्वारा उनकी स्मृति में प्रतिवर्ष सिनेमा में विशेष योगदान के लिए दादा साहेब फाल्के पुरुस्कार भी दिया जाता है।

उक्त बात हरियाणा कला परिषद के निदेशक व वरिष्ठ रंगकर्मी प्रो. संजय भसीन ने दादा साहेब फाल्के की पुण्यतिथि पर उनको याद करते हुए कही। उन्होंने कहा कि दादा साहेब फाल्के का जन्म 30 अप्रैल 1870 को त्रयंबक में हुआ था। उन्होंने रामायण और महाभारत जैसे पौराणिक महाकाव्यों से कहानियां लेकर फिल्में भी बनाई। उन्हें समस्याओं का सामना भी करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। राजा हरिशचंद्र फिल्म बनाई जो भारत की पहली फिल्म साबित हुई। इस फिल्म को देश-विदेश में बड़ी सराहना मिली। उन्होंने भगवान श्रीराम, कृष्ण, गुरु रामदास, शिवाजी, संत तुकाराम जैसी महान विभूतियों के चरित्र को चित्रित करने का बीड़ा भी उठाया था। उन्होनें चलचित्र निर्माण संबंधी कई पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन कर चलचित्र निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने भस्मासुर मोहिनी व साबित्री जैसी फिल्में भी बनाई।

भसीन का कहना है कि दादा साहेब ने कुल 125 फिल्मों का निर्माण किया था और 16 फरवरी 1944 को 74 वर्ष की अवस्था में तीर्थस्थली नासिक में उनका निधन हो गया था। भारत सरकार उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए प्रतिवर्ष चलचित्र जगत के किसी विशिष्ट व्यक्ति को दादा साहब फालके पुरस्कार भी देती आ रही है। आधुनिक सिनेमा से जुड़े लोगों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। यही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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