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बाल श्रम के खिलाफ आज भी जारी है शांता सिन्हा का अभियान : कटारिया

गुडग़ांव- बाल श्रम को रोकने के लिए केंद्र व प्रदेश सरकारों ने कई कानून बनाए हुए हैं, लेकिन इन कानूनों का कोई विशेष असर
देखने को नहंी मिल रहा है। आज भी बड़ी संख्या में बालश्रम कराया जा रहा है। कभी कभार बाल श्रम को रोकने के लिए छापामार कार्यवाही की सूचना अवश्य मिल जाती है। बालश्रम रोकने के लिए कई संस्थाएं कार्यरत हैं, लेकिन उन्हें पर्याप्त सहयोग न मिलने के कारण वे अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाती। शांता सिन्हा बालश्रम विरोधी कार्यकर्ता हैं। जो बालश्रम के विरोध में आवाज उठाती रही हैं। उनके जन्मदिन पर उन्हें याद करते हुए समाजसेवी विशाल कटारिया ने कहा कि शांता सिन्हा का मानना है कि शहरों तथा गांवों में गऱीबी का जो परिणाम गऱीबी को स्थायी बनाए रखने की बुनियाद बनता है, वह है बाल मजदूरी। शांति सिन्हा ने लोगों की इस धारणा को तोड़ा कि गरीबों
के बच्चों के काम किए बिना परिवार का गुजारा नहीं हो सकता। उन्होंने अपनी संस्था मामिडिपुडी वैंकटारंगैया फाउन्डेशन (एमवीएफ़) के माध्यम से बाल मजदूरी पर अंकुश लगाने का कार्य किया और ऐसे बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था भी उन्होंने की।

उनका जन्म 7 जनवरी, 1950 को आन्ध्र प्रदेश के नेल्लोर में हुआ था। उन्होंने जवाहरलाल यूनिवर्सिटी से डॉक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की थी। वह शुरू से ही बाल मजदूरी की विरोधी थी और वह चाहती थी कि इन बाल मजदूरों के लिए कुछ ठोस कार्य किया जाए। उन्होंने बंधुआ बाल मजदूरों को मुक्त कराकर उनकी शिक्षा की व्यवस्था भी की थी। कटारिया ने समाज से भी आग्रह किया कि वे बाल मजदूरी में लगे बच्चों को मुख्यधारा में लाने के लिए सहयोग करें। उनके इस उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें वर्ष 2003 रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से भी नवाजा गया था। भारत सरकार ने भी उन्हें वर्ष 1999 में पद्मश्री सम्मान से अलंकृत किया था। वह आज भी बाल श्रमिकों को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रयासरत हैं। उन्होंने समाज के लोगों से भी आग्रह किया है कि शांता सिन्हा द्वारा चलाए जा रहे मिशन में सभी को यथासंभव सहयोग करना चाहिए, ताकि बालश्रम में लगे बच्चे देश के एक सभ्य नागरिक बन सकें।

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