गुडग़ांव- नेत्रहीनों को पढ़ाई लिखाई में किसी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े, इसके लिए फ्रांस के लुई ब्रेल ने ब्रेल लिपि का आविष्कार किया था। क्योंकि वह स्वयं भी नेत्रहीन थे। कालांतर में स्वयं लुई ब्रेल ने 8 वर्षो के अथक परिश्रम से ब्रेल लिपि में अनेक संशोधन किए थे और अंत में 6 बिंदुओं पर आधारित ब्रेल लिपि बनाने में उन्हें सफलता भी मिली थी। उनकी जयंती पर उन्हें याद करते हुए वार्ड 16 के
भावी पार्षद उम्मीदवार समाजसेवी विशाल कटारिया ने कहा कि उनका जन्म 4 जनवरी 1809 को फ्रांस में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। लुई ब्रेल की इस लिपि को विश्व के अनेक देशों ने मान्यता भी दी थी।
4 जनवरी 2009 में जब लुई ब्रेल के जन्म को 200 वर्ष पूरे हो गए थे तो भारत सरकार ने उनके सम्मानार्थ एक डाक टिकट भी जारी किया था। कटारिया ने कहा कि लुई ब्रेल बचपन से ही अदभुत प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने मात्र 16 वर्ष की आयु में ब्रेल लिपि का आविष्कार कर लिया था। उनकी यह लिपि विश्व की दृष्टिहीन मानव जाति के लिए बड़ी उपयोगी साबित हुई। 6 जनवरी 1852 को मात्र 43 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था। उनके निधन के 16 वर्ष बाद 1868 में रॉयल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड यूथ ने ब्रेल लिपि को मान्यता दी थी। कटारिया ने आम लोगों से भी आग्रह किया कि नेत्रहीनों की सदैव सहायता करें और उन्हें पर्याप्त मान-सम्मान भी दें। उन्हें दया की जरुरत नहीं, उन्हें जरुरत है सहयोग की।
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