गुडग़ांव: देश की प्रथम महिला शिक्षिका, समाजसुधारिका एवं कवियत्री सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले को महिलाओं के उत्थान के लिए जाना
जाता है। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर महिला अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है। वर्ष 1852 में उन्होंने बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की थी। उनके दिखाए मार्ग पर चलकर ही महिलाओं व बालिकाओं का भला हो सकता है। उक्त बात श्रमिक नेता कुलदीप जांघू ने सावित्री बाई फुले को उनकी जयंती पर याद करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने बताया कि उनका जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था और उनका विवाह 1840 में ज्योतिराव फुले से हुआ था। ज्योतिराव फुले की सामाजिक सामाजिक सुधार आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। सावित्री बाई ने अपने पति के साथ मिलकर महिला समाज में व्याप्त कुरीतियों, छुआछूत, विधवा विवाह, महिलाओं की मुक्ति, दलित महिलाओं को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया था। श्रमिक नेता ने बताया कि उन्हें लोगों के विरोध का सामना भी करना पड़ा था। जब उन्होंने बालिकाओं के लिए स्कूल खोला तो उसका बड़ा विरोध हुआ था। उन्होंने हर बिरादरी व धर्म के लिए काम किया। उन्होंने 5 नए विद्यालय भी महिलाओं के लिए खोले थे। तत्कालीन सरकार ने इन्हें सम्मानित भी किया था। सावित्री बाई फुले उस दौर में न केवल स्वयं पढ़ी, बल्कि उन्होंने बालिकाओं के पढऩे की व्यवस्था भी की। 10 मार्च 1897 को प्लेग महामारी की चपेट में आ जाने के कारण उनका निधन हो गया था। समाज के प्रति की गई सेवाओं के लिए उन्हें देश सदैव याद रखेगा।
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