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प्रसिद्ध क्रांतिकारी राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को उनकी पुण्यतिथि पर किया याद

गुडग़ांव- देशवासी आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहे हैं जिसके तहत देश को आजाद कराने में क्रांतिकारियों, शहीदों व स्वतंत्रता सेनानियों को राष्ट्र याद कर रहा है। इन्हीं क्रांतिकारी शूरवीरों के बलिदानों के कारण देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो सका था। काकोरी कांड के प्रमुख रहे क्रांंतिकारी राजेंद्रनाथ लाहिडी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए वरिष्ठ श्रमिक नेता कुलदीप जांघू ने कहा कि उनका जन्म 29 जून 1901 को वर्तमान बांगला देश में पबना जिले के गांव मोहनपुर में मोहन लाहिड़ी के घर हुआ था। उनके पिता प्रसिद्ध क्रांतिकारी रहे हैं। जब उनका जन्म हुआ तो उनके पिता व बड़े भाई बंगाल में चल रही क्रांतिकारी गतिविधियों में योगदान देने के आरोप में कारावास की सलाखों के पीछे कैद थे। उन्होंने वाराणसी में अपने मामा के घर रहकर शिक्षा ग्रहण की थी। उनका कहना है कि प्रसिद्ध काकोरी कांड में राजेंद्र लाहिडी मुख्य अभियुक्त थे। वर्ष 1927 को गौंडा जिले के जिला कारागार में अन्य अभियुक्तों से 2 दिन पहले ही यानि कि 17 दिसम्बर को उन्हें अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी।

सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी शचींद्रनाथ सान्याल का उन्हें सानिध्य प्राप्त था। क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन करने वाले हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में भी उन्होंने बढ़-चढक़र भाग लिया था। उन्होंने युवाओं को आजादी के प्रति जागरुक करने के लिए बहुत कुछ किया था। काकोरी कांड में उनके साथ पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ, चंद्रशेखर आजाद व 6 अन्य क्रांतिकारी शामिल थे। इन क्रांतिकारियों ने ट्रेन में जा रहे खजाने को लूट लिया था और अंग्रेज उनका कुछ भी बिगाड़ नहीं पाए थे। उन्होंने कई वर्षों की सजा भी जेलों में काटी थी। अंगे्रजों ने काकोरी कांड में राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्लाह खां तथा ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई थी। फांसी पर चढऩे से पूर्व लाहिड़ी ने वंदेमातरम की हुंकार भरते हुए कहा था कि मैं मर नहीं रहा हूँ, अपितु स्वतन्त्र भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हूँ। श्रमिक नेता ने कहा कि युवाओं को राजेंद्रनाथ लाहिड़ी जैसे देशभक्त क्रांतिकारियों के आदर्शों को अपनाना चाहिए, यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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