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पूर्वजों का तो करते हैं श्राद्ध, जीवित माता—पिता वृद्धाश्रम में रहने पर हैं मजबूर

गुडगांवI पितृ पक्ष चल रहा है, जिसमें परिजन अपने पूर्वजों का पूरे विधि—विधान के अनुसार तर्पण भी कर रहे हैं ताकि दिवंगत आत्मा को शांति मिल सके। धार्मिक ग्रंथों भी पितृों के तर्पण का विशेष महत्व बताया गया है। लेकिन आधुनिकता के इस दौर और बदलते परिवेश में माता—पिता को उनके जीवित रहते हुए उनकी अधिकांश संतानों ने उनका तिरस्कार भी किया हुआ है। जिस कारण उन्हें वृद्धाश्रमों व अनाथालयों में अपना जीवन गुजारने पर बाध्य होना पड़ रहा है। एेसे माता—पिता का कहना है कि उनकी संतान ने तो उनका जीते—जी ही श्राद्ध कर दिया है।

उन्होंने अपने बच्चों के लिए विषम से विषम परिस्थितियों में भी उनका पालन—पोषण करते हुए उन्हें उन्नति के शिखर तक पहुंचाया है और जिंीभर की संपत्ति भी उनको बिना किसी लालच के सौंप दी है। एेसे में बच्चे उनको सही तरीके से रखने की बजाय उनका तिरस्कार करते रहे और उन्हें वृद्धाश्रम में शरण लेने के लिए मजबूर कर दिया है। बड़े ही रुंधे मन से उनका कहना है कि वे वृद्धाश्रम में रहते हुए भी सदैव यही सोचते हैं कि उनके बच्चे शायद उन्हें फिर से अपने घर ले आएंगे, लेकिन एेसा होता दिखाई नहीं दे रहा है। गुडगांव क्षेत्र में भी कई वृद्धाश्रम इन निराश्रित माता—पिता का पालन करने के लिए कार्यरत हैं।

बंधवाड़ी स्थित द अर्थ सेवियर्स फाउण्डेशन भी वृद्धाश्रम का संचालन करता है। इस आश्रम के संस्थापक रवि कालरा थे। गत वर्ष उनका आकस्मिक निधन हो गया था। अब इस आश्रम की जिम्मेदारी उनके सुपुत्र जश कालरा बखूवी निभा रहे हैं। जश कालरा का कहना है कि उनके आश्रम में सैकड़ों माता—पिता वृद्धावस्था में रहने के लिए आए हुए हैं। कुछ वृद्धजन तो एेसे हैं जो अपनी स्मरण शक्ति भी खो चुके हैं। आश्रम के कर्मी तथा वह स्वयं ऐसे वृद्धजनों का पूरा ख्याल रखते हैं और उनके आवास—भोजन की सभी जिम्मेदारी आश्रम की ही है। जानकारों का कहना है कि विदेह पितृों का श्राद्ध होता है और सदेह माता—पिता वृद्धाश्रम में हैं। ये माता—पिता यही सोचते हैं कि क्या धर्म, संस्कार और श्रद्घा केवल मरने के बाद ही महत्वपूर्ण हो जाते हैं और उनके परिजन उनका तर्पण करते हैं।

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