गुडग़ांवI अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य की जयंती पर उन्हें याद करते हुए गायत्री परिवार से जुड़े वक्ताओं ने कहा कि पंडित श्रीराम शर्मा ने अपना जीवन समाज की भलाई तथा सांस्कृतिक व चारित्रिक उत्थान के लिये समर्पित कर
दिया। उन्होंने आधुनिक व प्राचीन विज्ञान व धर्म का समन्वय करके आध्यात्मिक नवचेतना को जगाने का कार्य किया ताकि वर्तमान समय की चुनौतियों का सामना किया जा सके। उनका व्यक्तित्व एक साधु पुरुष, आध्यात्म विज्ञानी, योगी, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, लेखक, सुधारक, मनीषी व दृष्टा का समन्वित रूप था। 4 वेद, 108 उपनिषद, 6 दर्शन, 20 स्मृतिया और 18 पुराणों के भाष्यकार। उनका जन्म 20 सितम्बर 1911 को उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के आँवलखेड़ा ग्राम में एक जमींदार घराने में हुआ था।
उनके पिता पं. रूपकिशोर शर्मा आस-पास व दूर-दराज के राजघरानों के राजपुरोहित थे। पंडित श्रीराम शर्मा ने कभी भी जाति-पाति का कोई भेदभाव नहीं किया। किशोरावस्था में ही समाज सुधार की ओर उनका रुझान रहा। उन्होंने बेरोजगार युवाओं व नारी शक्ति के लिए कपड़े की बुनाई आदि का कार्य भी शुरु कराया था ताकि वे स्वाबलंबी बन सकें। वक्ताओं ने कहा कि महामना मदनमोहन मालवीय ने उन्हें काशी में गायत्री मंत्र की दीक्षा दी थी। उन्होने युग निर्माण के मिशन को गायत्री परिवार, प्रज्ञा अभियान के माध्यम से आगे बढ़ाया। उनका मानना था कि मानव के कार्य ही उनके विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या हैं। जीवन में सफलता पाने के लिए आत्मविश्वास उतना ही जरुरी है, जितना जीने के लिए भोजन। कोई भी सफलता बिना आत्मविश्वास के नहीं मिल सकती।
हरिद्वार के शांतिकुंज में उन्होंने अखिल भारतीय विश्व गायत्री परिवार की स्थापना की। उनके आदर्श वाक्य थे कि मानव मात्र एक समान, नर और नारी एक समान, जाति वंश एक समान, हम बदलेंगे युग बदलेगा, हम सुधरेंगे युग सुधरेगा, अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है को लेकर पूरे संसार को बदलने के अभियान में संस्था जुटी है। शांतिकुंज भारतीय संस्कृति के प्रति गहरी आस्था रखने वाले लोगों के लिए श्रद्धा का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। 2 जून 1990 को उनका निधन हो गया था। वर्ष 1991 में भारत सरकार ने उनकी स्मृति में एक डाक टिकट भी जारी किया था। संस्था से जुड़े लोगों ने कहा कि आचार्य को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि यही होगी कि उनके दिखाए रास्ते पर चलकर मानव समाज की सेवा की जाए।
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