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राष्ट्रीय चेतना की सजग कवियत्री रही हैं सुभद्रा कुमारी चौहान : डा. घमंडीलाल अग्रवाल

गुडग़ांवI देश की आजादी में जहां महान क्रांतिकारियों का योगदान रहा है, वहीं साहित्यकारों एवं लेखकों के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने भी अपनी रचनाओं व कविताओं के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना को बढ़ाने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी
थी। इन साहित्यकारों की रचनाएं राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण रही हैं। उनसे प्रेरित होकर असंख्य युवा स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में कूद
पड़े थे। पूरा देश आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहा है। ऐसे में स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने वाली विभूतियों को भी देशवासी याद कर रहे हैं। इसी क्रम में हिंदी की सुप्रसिद्ध कवियत्री व लेखिका सुभद्रा कुमारी चौहान को भी स्वतंत्रता संग्राम में दिए गए योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।

उनकी जयंती पर उन्हें याद करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डा. घमंडीलाल अग्रवाल ने कहा कि उनकी रचनाओं ने स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में एक चिंगारी का काम किया था। उनकी झांसी की रानी कविता बड़ी प्रसिद्ध हुई है। स्वाधीनता संग्राम में भी उन्होनें अनेक बार जेल यातनाएं सही और अपनी इन यातनाओं को कहानी के रुप में भी उन्होनें व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि उनका जन्म नागपंचमी के दिन इलाहाबाद के निकट निहालपुर नामक गांव में जमींदार परिवार में हुआ था। वह बाल्यकाल से ही कविताओं की रचना करने लगी थीं। गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली वह प्रथम महिला थी। वह कई बार जेल भी गई थी।

डा. अग्रवाल का कहना है कि बिखरे मोती उनका पहला कहानी संग्रह है। इन कहानियों की भाषा सरल बोलचाल की भाषा है। अधिकांश कहानियां नारी विमर्श पर केंद्रित हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान ने विभिन्न कहानी संग्रहों में 46 कहानियां लिखी और अपनी व्यापक कथा दृष्टि से वह एक अति लोकप्रिय कथाकार के रूप में हिन्दी साहित्य जगत में सुप्रतिष्ठित हैं। 15 फरवरी 1948 को एक कार दुर्घटना में उनका निधन हो गया था। उन्होंने आधुनिक साहित्यकारों से भी आग्रह किया है कि सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाओं से उन्हें प्रेरणा लेते हुए देशभक्ति से संबंधित रचना भी करें ताकि युवा वर्ग में देशप्रेम की भावना और अधिक जागृत हो।

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