गुडग़ांवI पुरुषोत्तम दास टंडन की भूमिका देश को आजाद कराने में बड़ी महत्वपूर्ण रही थी। उन्हें आधुनिक भारत का प्रमुख स्वाधीनता सेनानी माना जाता है। वह राजऋषि के नाम से भी विख्यात थे। उनकी जयंती पर उन्हें याद करते हुए वक्ताओं ने कहा कि उनका जन्म एक अगस्त 1882 को उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने स्नातकोत्तर व वकालत की डिग्री भी हासिल की। उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत भी की थी। वह आजादी से पूर्व उत्तरप्रदेश की विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे थे। वह हिंदी के अनन्य सेवक, अनन्य सेवक, कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक थे। महात्मा गांधी के आग्रह पर उन्होंने वकालत को छोडक़र स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था। उन्होंने कई बार जेल की यात्राएं भी की। पुरुषोत्तम दास टंडन ने भारत के विभाजन का डटकर विरोध भी किया था। वह हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने हिंदी रक्षक दल की स्थापना भी की थी।
वक्ताओं ने कहा कि आजादी के बाद उत्तरप्रदेश की विधानसभा के प्रवक्ता के रुप में उन्होंने 13 वर्ष तक कार्य किया। हिंदी भाषा को देश में अग्रणी स्थान दिलाने में अहम भूमिका निभाने के लिए उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से विभूषित किया गया था। उनका निधन एक जनवरी 1962 को हुआ था।
हिंदी भाषा को अग्रणी स्थान दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी पुरुषोत्तम दास टंडन ने
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