गुडग़ांवI देशवासी आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहे हैं, जिसमें देश की आजादी में अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले शहीदों,
क्रांतिकारियों व स्वतंत्रता सेनानियों को राष्ट्र याद भी कर रहा है। शिक्षाविद्, चिंतक व भारतीय जनसंघ के संस्थापक डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती पर कई कार्र्यक्रमों का आयोजन किया, जिसमें डा. मुखर्जी से जुड़े संस्मरण भी वक्ताओं ने साझा किए। भाजपा के वरिष्ठ नेता व जिला किसान मोर्चा के कोषाध्यक्ष सीताराम सिंघल ने डा.मुखर्जी को याद करते हुए कहा कि उनका जन्म 6 जुलाई 1901 को कलकत्ता के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। कानून की शिक्षा ग्रहण करने के बाद वह विदेश चले गए थे और वर्ष 1926 में इंग्लैण्ड से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे। 33 वर्ष की अल्पायु में वह कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने। उन्होंने कहा कि डा. मुखर्जी ने स्वैच्छा से आजादी के प्रति लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से राजनीति में प्रवेश किया था।
वह वास्तव में मानवता के उपासक और सिद्धान्तवादी थे। उन्होंने गैर गैर कांग्रेसी हिन्दुओं की मदद से कृषक प्रजा पार्टी से मिलकर प्रगतिशील गठबन्धन का निर्माण किया था। वह इस सरकार में वित्तमन्त्री बने थे। भाजपा नेता ने बताया कि आजादी की लड़ाई लड़ रहे वीर सावरकर के राष्ट्रवाद से डा. मुखर्जी बड़े प्रभावित थे। डा. मुखर्जी इस धारणा के प्रबल समर्थक थे कि सांस्कृतिक दृष्टि से पूरा देश एक है। इसलिए वह धर्म के आधार पर देश विभाजन के कट्टर विरोधी थे लेकिन मुस्लिम लीग ने अलग मुस्लिम राष्ट्र बनाने की जिद पकड़ी हुई थी। उन्होंने जनसंघ की स्थापना भी की थी।
गांधी जी और सरदार पटेल के अनुरोध पर वह स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में शामिल भी हुए थे और उन्हें उद्योग जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। संविधान सभा के सदस्य भी थे। राष्ट्रवादी चिन्तन के चलते उनके अन्य नेताओं से मतभेद बराबर बने रहे। जिसके फलस्वरुप उन्होंने मंत्रीमंडल से त्यागपत्र दे दिया था। अक्तूबर 1951 में भारतीय जनसंघ का गठन किया गया। वह जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। तत्कालीन सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर नजरबंद कर लिया था। 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई थी। सीताराम सिंघल ने युवाओं से आग्रह किया कि डा. मुखर्जी के आदर्शों पर चलकर ही देश व समाज का भला संभव है।
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