गुडग़ांवI देशवासी आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहे हैं, जिसके तहत स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले क्रांतिकारियों, शहीदों व स्वतंत्रता सेनानियों को भी याद किया जा रहा है। स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी व राजनीतिज्ञ गणेश घोष की जयंती पर उन्हें याद करते हुए वरिष्ठ श्रमिक नेता कुलदीप जांघू ने कहा कि उन्होंने अपने जीवन के लगभग 27 वर्ष जेलों में बिताए। उनका जन्म 22 जून 1900 को बंगाल में हुआ था। देश को आजाद कराने में उनका बड़ा योगदान रहा था। उन्होंने कलकता में उच्च शिक्षा ग्रहण की थी। इसी दौरान देश की आजादी में युवाओं को बढ़-चढक़र भाग लेने के लिए भी उन्होंने प्रयास किए थे।
वह प्रसिद्ध क्रांतिकारी सूर्यसेन के काफी नजदीक रहे थे और शस्त्र बल से अंग्रेजों की सत्ता समाप्त करना चाहते थे। उन्होंने क्रातिकारियों के साथ मिलकर चटगांव के शास्त्रगार और टेलिफोन, तार आदि अन्य महत्त्व के स्थानों पर मिलकर एकसाथ आक्रमण कर दिया। उनके इस आक्रमण से तत्कालीन अंगें्रजी सरकार भी आश्चर्यचकित रह गई थी। इन क्रांतिकारियों को शस्त्रागार से शस्त्र तो मिले, लेकिन गोला-बारुद नहीं मिल सका था और उन्हें सूर्य सेन के साथ पहाडिय़ों में जीवन व्यतीत करना पड़ा था।
इस मामले में उन्हें आजन्म कारावास की सजा देकर अंडमान भेज दिया गया था। स्वतंत्रता के बाद में भी उन्होंने आंदोलनों में भाग लिया था। वह कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित होकर कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य भी बन गए थे। श्रमिक नेता ने बताया कि गणेश घोष 1952 में बंगाल विधान सभा और 1967 में लोकसभा के सदस्य चुने गए थे। उनका निधन 16 अक्टूबर, 1994 को कलकता में हुआ था। श्रमिकों के लिए भी उन्होंने बड़ा कार्य किया था। उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि क्रांतिकारी गणेश घोष के दिखाए रास्ते पर चलकर ही युवा व श्रमिक वर्ग का भला हो सकता है और यही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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