गुडग़ांवI बच्चों की पहचान उनके माता-पिता के नाम से ही होती है। माता-पिता को सम्मान देने के लिए प्रतिवर्ष मातृ व पितृ दिवस मनाया जाता आ रहा है। शास्त्रों में भी उल्लेख है कि माता-पिता संतान को जन्म दिया है, जिसे संतान कभी उनका ऋण नहीं चुका सकता। फिर भी सुसंस्कारी बच्चे अपने माता-पिता का सम्मान व सेवा कर इस ऋण को चुकाने का प्रयास अवश्य करते हैं लेकिन कभी भी इस ऋण से मुक्त नहीं हुआ जा सकता। प्रति वर्ष पितृत्व यानि कि पिताओं के सम्मान में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। आज रविवार को देश के विभिन्न क्षेत्रों में फादर्स डे का आयोजन किया जाएगा। पिता के प्रति किया जाने वाला यह सम्मान मदर्स डे यानि कि मातृ दिवस का पूरक है।
यह विश्व के अन्य देशों में भी मनाया जाता है जिसमें बच्चे अपने पिता को विशेष उपहार देते हैं एवं पारिवारिक गतिविधियां भी उनके अनुकूल करते हैं। हमारा देश हिंदू परंपरा वाला देश रहा है। पाश्चात्य देशों से प्रेरित होकर फादर्स डे को मनाया जाने लगा है। हालांकि पितृों को मौजूदा हिंदू पूजा के रुप में अगस्त माह के अंत व सितम्बर माह के प्रारंभ में अमावश्या को मनाया जाता है जिन्हें पितृ पक्ष भी कहा जाता है। माता-पिता को याद करने के लिए ये 15 दिन का समय होता है। वैदिक परंपराओं के अनुसार इन दिनों अपने पूर्वजों को याद करने के साथ-साथ उन्हें अध्र्य देने का प्रावधान भी हमारे हिंदू शास्त्रों में है।
कहा जाता है कि यदि पूर्वज संतुष्ट हो जाते हैं तो वे अपने वंशजों को आशीष देते हैं जिससे उनका वंश फलता-फूलता है। फादर्स डे को भारत में फादर्स लव के महत्व को चिन्हित करने के लिए कई कहानियों से भी जोड़ा गया है। ये कहानियां पुत्र-पिता के मन की भावनात्मक भावनाओं से संबंधित हैं कि वे एक दूसरे के बारे में कैसा महसूस करते हैं लेकिन जब तक पुत्र को अपनी गलती का एहसास होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। वृद्ध माता-पिताओं को अनाथ आश्रम में भेजकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर देने की घटनाएं भी इन सबसे जुड़ी हैं। सुसंस्कारी बच्चे अपने घरों में रहकर ही अपने माता-पिता
की सेवा को ही अपना कर्तव्य व धर्म मानते हैं।
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