गुडग़ांवI पूरा राष्ट्र आजादी के 75वें अमृत महोत्सव का आयोजन कर रहा है। जिसके तहत स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने वाले
शहीदों, स्वतंत्रता सेनानियों व क्रांतिकारियों को भी याद किया जा रहा है। महान स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चितरंजन दास की पुण्यतिथि पर वक्ताओं ने उन्हें याद करते हुए कहा कि राजनीतिज्ञ, वकील, कवि, पत्रकार तथा भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रमुख सेनानी देशबंधु चितरंजन दास का जन्म 5 नवंबर 1870 को कोलकाता में हुआ था। उनका परिवार वकीलों का परिवार था। वह विदेश से वकालत की शिक्षा लेकर स्वदेश लौटे थे। उन्होंने देश की स्वतंत्रता में योगदान देने वाले अरविंद घोष जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के राजद्रोह के मुकदमों में भी पैरवी की थी। वह स्वतंत्रता सेनानियों के मुकदमे बिना पारिश्रमिक लिए ही लड़ते थे।
महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन का भी उन्होंने समर्थन दिया था। वक्ताओं ने कहा कि चितरंजन दास ने अपनी वकालत छोडक़र अपनी सारी संपत्ति मेडिकल कॉलेज व महिलाओं के लिए बनाए गए अस्पताल को दे डाली थी। उनके इस महान त्याग को देखते हुए ही उन्हें देशबंधु कहा जाने लगा था। उन्होंने आसाम के चाय बागानों के मजदूरों की दशा सुधारने में भी काफी काम किया था। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेेने के कारण उन्हें जेल यात्राएं भी करनी पड़ी। उन्होंने स्वराज दल की स्थापना भी की थी। वह बांगला भाषा के अच्छे ज्ञाता भी थे। बंगाल की जनता उनका बहुत आदर करती थी। उनकी स्मृति में देश की राजधानी दिल्ली में आवासीय क्षेत्र सीआर पार्क आज भी मौजूद है। उनके नाम पर देशबंधु कॉलेज व चितरंजन एवेन्यू सहित कई संस्थान भी सरकार ने उनके नाम पर खोले हुए हैं। 16 जून 1925 को उनका निधन हो गया था। वक्ताओं ने कहा कि ऐसे दानवीर के दिखाए रास्ते पर चलकर ही देश व समाज का भला संभव है। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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