गुडग़ांवI भारतीय संतों में संत कबीरदास का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्होंने सदैव आड़ंबरवादियों पर कड़ा प्रहार किया और समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने में उन्होंने अपना पूरा जीवन लगा दिया था। वह ऐसे समाज की रचना करना चाहते थे, जिसमें जाति-पाति, छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, ऊंच-नीच का किसी प्रकार का कोई भेदभाव न हो। उन्होंने समाज सुधार के साथ-साथ आद्यात्मिक उन्नति और निराकार ईश्वर प्राप्ति के लिए भी जीवनपर्यंत प्रयास किया। उनके उपदेश आज भी प्रसांगिक हैं। शहर के विभिन्न क्षेत्रों में सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं द्वारा कबीर जयंती का आयोजन किया गया। अवक्ताओं ने संत कबीर को उनकी जयंती पर याद करते हुए कहा कि वह हिंदू तथा इस्लाम धर्म दोनों को मानते थे, लेकिन फिर भी सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास रखते थे।
वह 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि व संत थे। हिंदी साहित्य के भक्तिकालीन युग में परमेश्वर की भक्ति के लिए वह एक महान प्रवर्तक के रूप में उभरे। उनकी रचनाओं ने भक्ति आंदोलन को काफी प्रभावित किया। कबीर पंथ नामक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी हैं। संत कबीर का जन्म 1398 में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को काशी में हुआ था। हालांकि वह जुलाहे का कार्य करते थे, लेकिन अपने कार्य करते-करते वह समाज व समुदायों पर भी टिप्पणी करने से नहीं चूकते थे। उन्होंने अपने भावों को दोहा के रुप में आम लोगों तक पहुंचाया। वक्ताओं ने कहा कि संत कबीर एक ही ईश्वर को मानते थे और वह कर्मकांड के घोर विरोधी थे।
यहां तक कि मूर्ति पूजा, ईद, रोजा, मस्जिद-मदिर पर भी तंज कसने से नहीं चूकते थे। उनका कहना था कि यह सब करने से इंसान को मोक्ष मिलना संभव नहीं है। यदि मोक्ष चाहते हो तो निस्वार्थ रुप से जरुरतमंदों की बिना किसी लालच के सेवा करो। यही ईश्वर व अल्लाह की सबसे बड़ी सेवा है। संत कबीर के यहां साधु-संतों का जमावड़ा लगा रहता था ऐसा बताया जाता है। हालांकि वह पढ़े-लिखे नहीं थे। फिर भी उन्होंने विभिन्न समुदायों, धर्मों का काफी ज्ञान प्राप्त किया था। उनके दोहे आज भी प्रसांगिक हैं। आयोजित हुए इन कार्यक्रमों में समुदाय से जुड़े काफी लोग शामिल हुए और वक्ताओं ने कहा कि संत कबीर के प्रति यही सबसे अच्छी श्रद्धांजलि होगी कि उनके दिखाए रास्ते पर चला जाए ताकि देश व समाज का भला हो सके।
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