गुडग़ांवI विदेशी हमलावरों से देश की रक्षा करने में विभिन्न समुदायों का भारी योगदान रहा है। मुगल शासकों से भी विभिन्न समुदायों के लोगों ने देश की आन-बान-शान की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है। सिख समुदाय का धर्मगुरुओं का योगदान भी किसी भी सूरत में देश की रक्षा के लिए कम नहीं आंका जा सकता। गुरु तेग बहादुर, गुरु गोविंद सिंह, गुरु अर्जुन सिंह आदि सरीखे गुरुओं ने समुदाय व देश की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। गुरु गोविंद सिंह के साहबजादों की शहादत का बदला लेने के लिए बंदा सिंह बहादुर ने बीड़ा उठाया और उसे पूरा भी किया। सिख समुदाय के वे पहले एक महान सेनानायक के रुप में जाने जाते हैं। उन्होंने गुरु गोविंद सिंह द्वारा लोक राज्य की राजधानी लोहगढ़ में स्वराज की नींव रखी थी।
इतना ही नहीं उन्होंने गुरु नानक देव और गुरु गोबिन्द सिंह के नाम से सिक्का और मोहरें जारी कर निम्न वर्ग के लोगों की उच्च पदों पर आसीन कराया था। किसान-मजदूरों को जमीन का असली मालिक बनाया दिया था। 9 जून 1716 को तत्कालीन मुगल बादशाह फर्रुखसियर के आदेश पर बंदा सिंह और उनके मुख्य सैन्य अधिकारियों के शरीर काटकर टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए थे। उक्त उद्गार सिख समुदाय के वक्ताओं ने बंदा सिंह बहादुर की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि उनका जन्म कश्मीर स्थित पुंंछ जिले के राजौरी क्षेत्र में 1670 को ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
अल्पायु में वह कुश्ती और शिकार में पारंगत हो गए थे। वह अपना घर छोडक़र बैरागी बन गए थे। इसलिए उन्होंने बंदा बैरागी के नाम से भी जाना जाता है। सिखों के 10वें गुरु गोविंद सिंह के उपदेशों से बंदा बैरागी बड़े प्रभावित थे। गुरु गोविंद सिंह के आदेश से ही सिखों के सहयोग से मुगल सेना को पराजित करने में उन्होंने सफलता भी प्राप्त की थी और सतलुज नदी के दक्षिण में सिख राज्य की स्थापना कर खालसा के नाम से शासन भी किया था।
वक्ताओं का कहना है कि फरवरी 1716 को 794 सिक्खों के साथ बंदा बैरागी को दिल्ली लाया गया और 7 दिनों में प्रतिदिन 100 सिखों की बलि भी तत्कालीन मुगल सम्राट ने दी, जिनमें बंदा बैरागी भी शामिल थे। उनका कहना है कि मरने से पूर्व बंदा बहादुर ने अति प्राचीन जमीदारी प्रथा का अंत कर किसानों को बड़े-बड़े जागीदारदारों व जमीदारों की दासता से मुक्त करा दिया था। कहा जाता है कि उनकी सेना में हजारों की संख्या में मुस्लिम सैनिक भी थे। सिख समुदाय उनको बड़े सम्मान के साथ आज भी याद करता है। गुरुद्वारों में भी उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर शबद कीर्तन व अरदास का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में समुदाय के लोग शामिल हुए और उन्हें याद किया।
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