गुडग़ांवI देश के स्वतंत्रता संग्राम में देशवासियों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। इन बलिदानियों में युवतियां व महिलाएं भी पीछे नहीं रही थी। ऐसे बहुत से स्वतंत्रता सेनानी हैं जिन्होंने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था, लेकिन देशवासियों को ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों की जानकारी भी नहीं है। देशवासी आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहा हैं, जिसके तहत स्वतंत्रता संग्राम में अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों व शहीदों को याद किया जा रहा है।
यदि ऐसे में पश्चिम उत्तरप्रदेश के बड़ौत की नाबालिक 2 वीरांगनाओं 16 वर्षीय शिवदेवी तोमर व 14 वर्षीय उनकी बहन जयदेवी तोमर का जिक्र अमृत महोत्सव में न किया जाए तो यह इन वीरांगनाओं के साथ समुचित न्याय नहीं होगा। वरिष्ठ श्रमिक नेता कुलदीप जांघू ने वीरांगना शिवदेवी तोमर व उनकी छोटी बहन जयदेवी तोमर की कुर्बानियों को याद करते हुए अकहा कि अंग्रेजी सेना के दमन का प्रतिशोध लेने के लिए उन्होंने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। उनका कहना है कि 10 मई 1857 को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मेरठ के सैनिकों ने अंगे्रजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया था।
शीघ्र यह विद्रोह आस-पास के शहरों, यहां तक आसपास के गांवों में फैल गया। बड़ौत के बाबा शाहमल सिह तोमर ने इलाके पर घेरा डाल दिया और आजादी घोषित कर दी। उनका कहना है कि इसकी जानकारी होते ही अंग्रेजी सेना बड़ौत पहुंची और ग्रामीणों पर हमला कर दिया। भीषण युद्ध हुआ, जिसमें शाहमल जाट वीरगति को प्राप्त हुए। अंग्रेज़ों ने करीब 3 दर्जन स्वतंत्रता सेनानियों को गांव में ही फांसी पर चढ़ा दिया था। गांव को बुरी तरह लूटा व बर्बाद किया गया। अंग्रजों ने गांव का रसद पानी बंद कर दिया, अनाज, जानवरों, फसलों और संपत्ति पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया। 16 वर्षीय शिवदेवी तोमर ने अपनी आंखों से ही यह सबकुछ देखा था, जिससे उन्हें प्रतिशोध की भावना जागृत हुई और उन्होंने क्षेत्र के युवाओं को एकत्रित कर अंग्रेजी टुकड़ी पर जबरदस्त हमला कर दिया था।
कई अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया था। अंग्रेंज बड़ौत छोडक़र भाग खड़े हुए। इस हमले मेंं शिवदेवी तोमर भी गंभीर रूप से घायल हो गईं। गांव वाले जब उसका उपचार कर रहे थे तो अंग्रेजी सेना की एक टुकड़ी ने शिवदेवी को गोली मार दी थी। इस प्रकार उन्होंने अपने प्राण आजादी के लिए न्यौछावर कर दिए थे। श्रमिक नेता का कहना है कि शिवदेवी तोमर की मौंत का बदला लेने के लिए उनकी 14 वर्षीय छोटी बहन जयदेवी तोमर ने शपथ ली कि वह गांव के युवाओं के साथ मिलकर अपनी बहन व ग्रामीणों की मौत का बदला अंगे्रजों से अवश्य लेंगी। कहा जाता है कि बहन को गोली मारने वाली अंग्रेजी सेना की टुकड़ी का पीछा उन्होंने लखनऊ तक किया।
रास्ते में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने के लिए देशवासियों को भी ललकारा। जिस अंग्रेजी सैनिक टुकड़ी ने बड़ौत के ग्रामीणों पर हमला किया था, उस टुकड़ी के अंग्रेज अधिकारी का जयदेवी ने सिर भी कलम कर दिया और कई अंगे्रज सैनिकों को भी मार डाला। इस संघर्ष में स्वयं जयदेवी भी वीरगति को प्राप्त हुई। श्रमिक नेता का कहना है कि उपराष्ट्रपति वैंकया नायडू ने भी उनके बलिदान को नमन करते हुए पोस्ट की थी। उन्होंने पोस्ट में लिखा था कि जब ये वीरांगनाएं शत्रुओं का मुकाबला कर सकतीं हैं तो देशवासी क्यो नही कर सकते। वीरांगनाओं को सबसे अच्छी श्रद्धांजलि यही होगी कि देशवासी उनकी कुर्बानियों को कभी न भूलें। ऐसे ही क्रांतिकारियों की बदौलत आज देश खुली हवा में सांस ले रहा है।
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