पति के प्राणों को वापिस लाने के लिए यमराज से भिड़ गई थी सावित्री। सनातन धर्म में धार्मिक आयोजन बहुतायात में समय-समय होते रहते हैं। प्राचीन काल से ही यह सिलसिला चला आ रहा है। भारतीयों की धर्म के प्रति भावनाएं बड़ी ही प्रबल हैं। अधिकांश पर्वों में महिलाओं की भागीदारी अच्छी-खासी होती है। अपने सुहागन की रक्षा व दीर्घायु के लिए धार्मिक पर्वों पर व्रत भी रखती आ रही हैं। कहा जाता है कि सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा करने के लिए यमराज तक से भी भिड़ गई थी और अंत में यमराज को उसके पति को प्राण वापिस लौटाने ही पड़े थे।
सावित्री की पति के प्रति भक्ति को देखते हुए प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर वट सावित्री व्रत का आयोजन महिलाएं करती आ रही हैं। इस व्रत को सुहागिन महिलाएं ही रखती हैं। ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि पर यह पर्व 29 मई, दिन रविवार को होगा। इस दिन महिलाएं मां लक्ष्मी व भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना कर बरगद के पेड़ की पूजा कर परिक्रमा भी करेंगी। व्रतधारी महिलाएं सावित्री व्रत की कथा भी सुनेंगी। ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि रविवार को दोपहर 2 बजकर 54 मिनट से अमावस्या शुरु हो रही है, जिसका अगले दिन सोमवार सायं 4 बजकर 59 मिनट पर समापन होगा। ऐसे में महिलाएं रविवार को ही सावित्री व्रत रखेंगी।
उनका कहना है कि वट सावित्री व्रत के दिन सर्वार्थ सिद्धि का योग भी बन रहा है। यह योग प्रात: 7 बजकर 12 मिनट से प्रारंभ होगा, जोकि पूरे दिन रहेगा। उनका कहना है कि इसदिन व्रत रखना अति पुण्य फलदायी माना गया है। ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि वैसे तो महिलाएं यह व्रत पूरे दिन नहीं रखती, लेकिन कुछ महिलाएं पूरे दिन व्रत रखती हैं और व्रत में जो पूजा में चढ़ाया जाता है, उन्हीं वस्तुओं का भोजन के रुप में भी इस्तेमाल किया जाता है। वट सावित्री व्रत में आम, चना, पूरी, खरबूजा आदि इन्हीं सभी वस्तुओं से वट वृक्ष की पूजा की जाती है और खाने में इन्हीं का इस्तेमाल भी किया जाता है। उत्तरी भारत सहित देश के अन्य प्रदेशों में इस व्रत की बड़ी मान्यता है।
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