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कोरोना वायरस महामारी के दौर में भी भगवान बुद्ध के संदेश आज भी हैं प्रसांगिक

गुडग़ांव, कोरोना महामारी से पूरा विश्व जूझता आ रहा है।
भारत देश भी इससे अछूता नहीं रहा है। कोरोना महामारी की दूसरी लहर का
सामना भारत कर रहा है। इस दौरान बहुतों को खोया भी है। धीरे-धीरे इस
महामारी से देशवासियों को थोड़ी राहत मिलनी शुरु हो गई है। कोरोना
महामारी के इस दौर में भगवान गौतम बुद्ध के संदेश व उपदेश आज भी
प्रसांगिक हैं। बुद्धम शरणम् गच्छामि की प्रार्थना को चरितार्थ करते हुए
पूरे विश्व में एक बार फिर से युद्ध नहीं बुद्ध की चेतना जागृत हुई है।
बुद्ध मानव के लिए हमेशा प्रसांगिक रहे हैं। उक्त उद्गार विभिन्न
संस्थाओं के समाजसेवियों व धर्मप्रेमियों ने बुधवार को भगवान गौतम बुद्ध
की जयंती पर व्यक्त किए। उनका कहना है कि रोग, बुढापा और मृत्यु के मामले
कष्ट से दुखी होकर करीब 2600 वर्ष पहले राजकुमार सिद्धार्थ गौतम राजमहल
से रात्रि में मनुष्य के जरा मरण रोग से मुक्ति का उपाय ढूंढने निकल पड़े
थे। कठिन तपस्या और एकांत वास के बाद बिहार के बोधगया में पीपल के वृक्ष
के नीचे ध्यान मग्र स्थिति में उनको ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और वह
राजमहल का त्याग करने वाले राजकुमार से बुद्ध हो गए थे। ज्ञान प्राप्त
होने के बाद गौतम बुद्ध ने मानव मात्र के कल्याण के लिए अपना जीवन
समर्पित करते हुए 12 प्रतिज्ञाएं की थी। भगवान बुद्ध की छठी व सातवीं
प्रतिज्ञाएं आज उन्हें और भी प्रसांगिक सिद्ध करती हैं। छठी प्रतिज्ञा
में बीमार, अशक्त, सभी पूर्ण स्वस्थ हों और जो गौतम बुद्ध की शरण में
आएंगे वे रोग आदि से मुुक्त होंगे। आखिारी प्रतिज्ञा में गौतम बुद्ध ने
कहा था कि मैं समस्त रोगियों, असहाय व गरीब लोगों को हर प्रकार के कष्ट
और पीड़ा से मुक्ति दूंगा। उन्होंने धर्म के आचरण को कष्ट, पाप व पीड़ा
के निवारण का मार्ग बताया था। जापान, चीन, तिब्बत, मगोलिया, वियतनाम आदि
देशों के बौद्धों का पारंपरिक विश्वास है कि केवल बुद्ध की मूर्ति से
स्पर्श या उनके नामोच्चारण से ही अनेक रोगों का उपचार हो जाता है। विश्व
के अनेक देशों में भगवान गौतम बुद्ध के प्राचीन मंदिर आज भी स्थित हैं,
जिनकी काफी मान्यताएं हैं। गौतम बुद्ध का कहना था कि पशुओं की हत्या घोर
पाप है। मांस-मदिरा बुद्धि भ्रष्ट कर देती है, सत्य का पालन व दया भावना
ही कल्याणकारक है। सत्कर्म करो, तभी जीवन सफल होगा।

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