गुडग़ांव, भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने
नरसिंह का अवतार लिया था और हिरण्यकश्यप का वध किया था। हिरण्यकश्यप का
वध करना इतना आसान नहीं था, क्योंकि उसे भगवान ब्रह्मा से एक विशेष वरदान
प्राप्त था, जिसके चलते वह स्वयं को ही भगवान मानने लगा था। बुधवार को
वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को भगवान नरसिंह की जयंती
श्रद्धालुओं ने अपने घरों में मनाई। क्योंकि कोरोना वायरस के प्रकोप के
चलते सभी मंदिर व धार्मिक स्थल बंद हैं। कथावाचक डा. मनोज शर्मा का कहना
है कि हिंदू धर्म में इस जयंती को विशेष महत्व दिया जाता है। भगवान
विष्णु का यह अवतार यह बताता है कि जब भी किसी भक्त पर कोई संकट आता है
तो भगवान विष्णु उसकी रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। उनका कहना है कि
श्रद्धालुओं ने व्रत रखकर नरसिंह की कथा का श्रवण भी किया। धार्मिक
ग्रंथों में उल्लेख है कि कश्यप नामक ऋषि के 2 पुत्र हरिण्याक्ष और
हिरण्यकश्यप थे। भगवान विष्णु ने हिरण्याक्ष का वराह रूप धारण कर वध किया
था क्योंकि उसके अत्याचार बढ़ते ही जा रहे थे। कहा जाता है कि अपने भाई
का बदला लेने के लिए हिरण्यकश्यप ने कठोर तपस्या की और ब्रह्मा से अजेय
होने का वरदान प्राप्त किया, जिससे वह अंहकारी हो गया था। जबकि उसका
पुत्र प्रहलाद अपने पिता के कृत्यों का विरोध करता था। प्रहलाद भगवान
विष्णु की आराधना में लीन रहते थे। उसका पिता इस सबका विरोध करता था, जिस
पर उसने प्रहलाद को यातनाएं भी देनी शुरु कर दी थी। नरसिंह भगवान ने भक्त
प्रहलाद को आशीर्वाद दिया था कि जो भी उनका व्रत रखेगा वह सभी प्रकार के
कष्टों से दूर रहेगा और उसके जीवन में सुख-शांति बनी रहेगी।
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