गुरुग्राम। गुरूदेव केवल प्रवचनकर्ता ही नहीं होते, वे अपने अपने प्रवचनों से भीड़ को प्रभावित ही नहीं करते, अपितु सच्चे श्रोताओं के हृदय को ज्ञान प्रकाश से प्रकाशित करते हैं। अज्ञान के घोर अंधकार से अपने शिष्यों को बाहर निकालते हैं। उक्त उद्गार गीता ज्ञानेश्वर डा. स्वामी दिव्यानंद महाराज ने ज्योति पार्क स्थित श्रीगीता आश्रम में श्रीगीता साधना सेवा समिति द्वारा आयोजित 2 दिवसीय गुरु पूर्णिमा महोत्सव का शुभारंभ करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि गुरू का अर्थ ही यही है जो गंभीर हो, उदार हो और आध्यात्मिक रहस्यों के उद्घाटक हों, जीवन शांत और प्रसन्न हो। उनका कहा है कि गुरु अकिंचन शिष्य को भी महान बना देते हैं। जैसे एक कारीगर पत्थर में से भगवान की मूर्ति प्रकट कर देता है, इसी प्रकार शिष्य को तराश कर उसे साधना देकर उसे जीवन से ब्रह्म होने की अनुभूति करा देते हैं। उनका कहना है कि शिष्य तो खोखला बांस की भांति होता है, जिसे गुरूदेव बांस से बांसुरी बना देते हैं, जिसमें आनंद की स्वर लहरियां निकलती रहती हैं। लेकिन आज का यह दुर्भाग्य है कि अधिकांश गुरू शिष्य के संबंध केवल गुरू मंत्र लेने देने तक ही सीमित रह गए हैं। जीवन आध्यात्मिक हो इससे कोई लेना देना नहीं रह गया है। आश्रम के वरिष्ठ प्रबंधक राजेश गाबा का कहना है कि कार्यक्रम का शुभारंभ सद्गुरूदेव श्री गीता विहारी महाप्रभु का पादुका पूजन से हुआ। विधिवत रुप से समाजसेवी व ओम स्वीट्स के संचालक ओमप्रकाश कथूरिया व उनके परिजनों तथा समाजसेवी रामकिशन गांधी द्वारा ज्योति प्रज्जवलित कर किया गया। उनका कहना है कि इस अवसर पर समाजसेवी वेद आहुजा, प्रणव, धर्मेंद्र वर्मा, एमके भारद्वाज, वेद एलाबादी, बिन्नी मलिक, अमेया और शिवानी सहित बड़ी संख्या में महिला-पुरुष श्रद्धालु मौजूद रहे।