गुडग़ांव, आत्मवेत्ता सदगुरु की संगति यदि प्रत्यक्ष
वचनों द्वारा उनके दिव्य उपदेश द्वारा हो जाए तो जीवन संग्राम में विजयी
होना सरल हो जाता है। सदगुरु बैसाखी नहीं, अपितु एक पुल के समान है। यह
कहना है श्रीगीता साधना समिति के संस्थापक गीताज्ञानेश्वर डा. स्वामी
दिव्यानंद महाराज का, जो उन्होंने बैसाखी पर्व पर श्रद्धालुओं से कही।
उनका कहना है कि गुरुदेव शास्त्र विधि के अनुसार जिस अनासक्त योग और
व्यवहार कुशलता का शस्त्र प्रदान करते हैं, उसका प्रयोग कर कोई साधक
शिष्य शत्रुओं को समाप्त कर निर्विकार हो सकता है। भगवान श्रीकृष्ण ने
असंगता के रुप में यही शस्त्र अर्जुन को दिया था। महाराज जी का कहना है
कि सदगुरु की यही परमकरुणा है, जिसका हमें सदैव दर्शन करना है और सदैव
उन्हें अपने पास ही अनुभव करना है। जीवन का प्रत्येक कड़वे अनुभव को भी
आत्मसात करना है। उनका कहना है कि गुरुदेव के प्रति श्रद्धा ही वह कसौटी
है जो हमें किसी भी परिस्थिति में शांत बनाए रखती है। उन्होंने भारतीय
नववर्ष की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि जिस तरह सूर्य प्रकाश देता है,
संवेदना करुणा को जन्म देती हैं, पुष्प सदैव महकता रहता है, उसीर प्रकार
हमारा यह भारतीय नूतन वर्ष भी हर भारतीय के लिए हर दिन, हर पल मंगलमय हो।
महाराज जी ने निस्वार्थ भाव से जरुरतमंदों की सेवा करने का आग्रह भी
श्रद्धालुओं से किया।
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