गुरुग्राम। विजडम का अर्थ सबके प्रति प्यार और करुणा का भाव है। समाज में एक दूसरे के लिए सम्मान की भावना जरूरी है। यह विचार दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायाधीश मिनी पुष्करना ने व्यक्त किए।
ब्रह्माकुमारीज के ओम शांति रिट्रीट सेंटर में शनिवार से शुरू हुए तीन दिवसीय सम्मेलन के शुभारम्भ में उन्होंने यह बात कही। उन्होंने कहा कि न्याय बिना विवेक के एक मशीन की तरह है और विजडम बिना न्याय के दिशा रहित है। न्याय हमें आश्वस्त करता है। महत्वाकांक्षा के साथ जीने का अवसर देता है। न्याय के लिए केवल कानून ही नहीं, बल्कि प्यार और करुणा भी जरूरी है। लेकिन समय और सभ्यता के अनुसार न्याय बदलता चला गया। न्याय का अर्थ पर्यावरण के साथ संतुलन बनाए रखना है। लॉ का अर्थ किसी को बांधना नहीं बल्कि सामाजिक समरसता बनाए रखना है।
ओआरसी की निदेशिका राजयोगिनी आशा दीदी ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि हमारी संस्कृति में विजडम का स्थान सर्वोपरि रहा है। उन्होंने कहा कि भारत आध्यात्मिकता में विश्व गुरु है। विवेक का उपयोग अनिवार्य है। हमें विवेक की प्रवृत्ति को जागृत करना है। उन्होंने कहा कि हमारे कर्म सबसे बड़े जज होते हैं। न्याय संगत होकर अपने कार्य को निमित भाव के साथ करना ही विजडम है। विजडम से समदर्शिता आती है। आंध्र प्रदेश, उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश वी. ईश्वरैया ने कहा कि न्याय का अर्थ सच्चाई और विश्वास है। न्याय समाज में समानता, एकता और भाईचारा स्थापित करता है। लेकिन वर्तमान समय न्यायिक प्रक्रिया में काफी मुश्किलें आ गई हैं। जस्टिस ईश्वरैया ने कहा कि वो काफी समय से राजयोग का अभ्यास कर रहे हैं। योग से उनके अंदर एक अद्भुत परिवर्तन हुआ। जिस कारण जो भी निर्णय लिए उनमें पारदर्शिता और संतुष्टता का अनुभव किया।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एवं संस्थान के न्यायिक प्रभाग के उपाध्यक्ष बी. डी. राठी ने कहा कि न्यायिक क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता है। न्याय वो है जिसमें रहम, दया और करुणा हो। न्याय वो है जो दिव्य विवेक से किया जाए। न्यायविद प्रभाग के राष्ट्रीय संयोजक बीके नथमल ने प्रभाग के द्वारा की जा रही गतिविधि की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि प्रभाग का उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया से जुड़े लोगों को आध्यात्मिक रूप से सशक्त करना है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ए. आर. मसूदी ने कहा कि न्याय के तराजू का संतुलन जरूरी है। जिसके लिए स्व-अनुभूति की आवश्यकता है। जस्टिस मसूदी ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज संस्थान जाति धर्म से ऊपर उठकर मानवता के लिए कार्य कर रहा है। यहां आकर उन्हें सच्चा सेवाभाव देखने को मिलता है। जीवन को सुख-शांति सम्पन्न बनाने के लिए राजयोग जरूरी है। केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के न्यायिक सदस्य राजवीर सिंह वर्मा ने कहा कि आज तथ्य का न्याय होता है, सत्य का नहीं। इसलिए न्याय के साथ आध्यात्मिक गुणों का समावेश जरूरी है। आत्म चिंतन और आत्म शुद्धि ही सद् विवेक का आधार है।
-ब्रह्माकुमारीज संस्थान के न्यायविद प्रभाग ने किया आयोजन
