गुरुग्राम। भाद्र पक्ष की पूर्णिमा के साथ ही पितृों को तर्पण करने व उनको याद करने के लिए श्राद्धों का शुभारंभ हो चुका है। पितृों को तर्पण करने व पूजन के लिए लोगों का मंदिरों में भी तांता लगना शुरु हो गया है। अधिकांश लोग पितृों को याद करने के लिए अपने घरों में ही पितृों का श्राद्ध करते हैं और अपनी सामथ्र्यनुसार ब्राह्मणों को भोजन करा उन्हें दक्षिणा भी देते हैं। सामाजिक संस्थाओं व समाजसेवियों ने शहर के कुछ मंदिरों में श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन कराने शुरु कर दिए हैं। हालांकि रविवार को चंद्र ग्रहण से लगने वाले सूतक के कारण सभी मंदिरों के कपाट दोपहर बाद बंद कर दिए गए, जो आज प्रात: ही चंद्रग्रहण समाप्त हो जाने के बाद खुलेंगे। पंडितों का कहना है कि पूर्णिमा के श्राद्ध के साथ यानि कि रविवार से पितृ पक्ष शुरु हो गए हैं। जो 21 सितम्बर को अमावश्या के साथ संपन्न हो जाएंगे।
पूरे विधि-विधान से करें श्राद्ध
पंडित डा. मनोज शर्मा का कहना है कि परिजनों को श्राद्ध पूरे विधि-विधान के अनुसार स्वच्छता का ध्यान रखकर करने चाहिए, ताकि उनके पितृों को शांति मिल सके। उनका कहना है कि परिजनों का कर्तव्य बन जाता है कि वे पितृों की याद में वह सब करें, जो पितृों को पसंद था तभी वे प्रसन्न होंगे। उनका कहना है कि जिन पितृों की मृत्यु तिथि का मालूम नहीं होता है तो उनके परिजनों को अमावस्या के दिन ही श्राद्ध करना चाहिए। मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में यमराज कुछ समय के लिए पितृों को आजाद कर देते हैं, ताकि वे परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें। इसी सब को मानते हुए परिजन अपनी सामथ्र्यनुसार श्राद्ध करते हैं। श्राद्ध पक्ष तो पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का पर्व माना जाता है।
पूर्णिमा श्राद्ध का महत्व
पंडित डा. मनोज शर्मा का कहना है कि पूर्णिमा श्राद्ध को पार्वण श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है। यह उन लोगों के लिए विशेष रूप से आयोजित किया जाता है, जिनका देहांत पूर्णिमा तिथि को हुआ हो। मान्यता है कि इस दिन श्राद्ध कर्म करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। यह श्राद्ध पितृ पक्ष की शुरुआत से पहले एक महत्वपूर्ण धार्मिक कार्य है। श्राद्ध के सभी अनुष्ठान अपराह्न काल समाप्त होने से पहले पूरे कर लेने चाहिए। अनुष्ठान के अंत में तर्पण करना अनिवार्य है, जो पितरों को तृप्त करने का महत्वपूर्ण हिस्सा है।