गुडग़ांव, कोरेाना वायरस महामारी के दौरान फादर्स डे भी
बच्चों ने अपने घरों में ही मनाया। कोरोना से पूर्व प्रतिवर्ष शिक्षण
संस्थानों में फादर्स डे को छात्र बड़े ही धूमधाम से मनाते आ रहे थे,
लेकिन इस बार सभी शिक्षण संस्थाएं कोरोना के चलते बंद हैं, इसलिए बच्चों
ने अपने माता-पिता के साथ ही फादर्स डे मनाया। कहा जाता है कि पिता
बच्चों से भले ही मां जैसा प्यार नहीं करते हों, उन्हें मां की तरह लौरी
नहीं सुनाते हों, लेकिन दिनभर की थकान के बाद पिता रात का पहरा बन जाते
हैं और जब पिता प्रात: घर से निकलते हैं तो किसी की किताब, किसी की दवाई
और किसी के खिलौने की मांग को पूरा करते हैं। बच्चे हों या बड़े सभी
अपने-अपने तरीकों से पिता को याद किया है। उन्होंने पिता से जुड़े
संस्मरण भी सुनाए। बच्चों के बड़े होने व पूरी जिंदगी ही पिता का अपने
बच्चों के प्रति समर्पण का भाव रहता है। जो अक्सर नजर नहीं आता। पिता उस
वटवृक्ष की तरह होता है, जिसकी छांव में बच्चे अपने अमूल्य जीवन का बहुत
बड़ा हिस्सा निर्भीक होकर गुजारते हैं। पिता उस छड़ी की तरह होता है, जो
अपने बच्चों की जीवन-पथ की हर बाधा के समय मजबूत सहारे का काम करती है।
पिता ही है जो बच्चों को जीवन में संघर्ष करने की कला सिखाते हैं, ताकि
वे जीवन की हर परिस्थिति का यथावत सामना करते रहें।
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