गुरुग्राम। भारत को पर्वो का देश कहा जाता है। देश में हर समुदाय को अपने पर्व व त्यौहार मनाने की पूरी स्वतंत्रता है। इन पर्वों में अन्य समुदायों के लोग भी बढ़-चढकर भाग लेते रहे हैं। हिंदू समुदाय के पर्वों की कोई निश्चित संख्या नहीं है। आए दिन कोई न कोई त्यौहार होता ही है और लोग उसे बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इसी क्रम में कल रविवार को सावन के शुक्ल पक्ष की तृतीया को तीज महोत्सव के रुप में मनाया जाएगा। यह तीज पर्व सिंधारा, हरियाली तीज, मधुस्रवा तृतीय या छोटी तीज के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व विशेष तौर से महिलाओं का त्यौहार होता है। तीज का संपूर्ण रंग प्रकृत्ति के रंग में मिलकर अपनी अनुपम छटा बिखेरता है। तीज पर्व को लेकर शहर के मुख्य सदर बाजार सहित अन्य बाजारों में भी रौनक दिखाई दे रही है। नव विवाहिता यह पर्व अपने मायके में मनाती है। जहां महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं, वहीं इस व्रत को अविवाहित कन्याएं योग्य वर को पाने के लिए करती हैं तथा विवाहित महिलाएं अपने सुखी दांपत्य के लिए करती हैं। देश के पूर्वी इलाकों में लोग इसे हरियाली तीज के नाम से जानते हैं। इस समय प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित हो जाता है जगह-जगह झूले पड़ते हैं और महिलाएं समूह में गीत गा-गाकर झूला झूलती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुष महिलाओं को झूला झुलाते हैं। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है।
तीज का है बड़ा ही धार्मिक महत्व
तीज का पौराणिक धार्मिक महत्व रहा है। पंडित मुकेश शर्मा का कहना है कि मान्यता है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रुप में प्राप्त करने के लिए सावन माह में व्रत रखा था। देवी की तपस्या से प्रसन्न हो भगवान शिव ने उन्हें अपनी वामांगी होने का आशीर्वाद प्रदान किया था। इसी कारण से विवाहित महिलाएं इस व्रत को अपने सुखी विवाहित जीवन की कामना के लिए करती हैं। इस दिन महिलाएं मां पार्वती का पूजन कर परिवार के लिए सुखी समृद्धि की कामना भी करती हैं।
मेलों का भी होता है आयोजन
हरियाली तीज पर मेलों का आयोजन भी होता है। जिला प्रशासन व सामाजिक, धार्मिक संस्थाएं भी तीज मेलों का आयोजन करती हैं, जिनमें महिलाओं से संबंधित प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है। मेला प्रबंधन समितियों द्वारा मेलों में मेहंदी लगाने और झूले झूलने की व्यवस्था भी की जाती है। महिलाएं मेहंदी लगाती हैं तथा लोकगीतों पर झूला झूलती दिखाई देती हैं।
बाजार में सजी हैं घेवर की दुकानें
तीज पर्व पर घेवर का महत्व भी अधिक हो जाता है। बहू-बेटियों के तीज के सिंधारे में घेवर भेजे जाने की परंपरा है। शहर के सदर बाजार, जैकबपुरा, ओल्ड व न्यू रेलवे रोड, विभिन्न सैक्टरों में विभिन्न प्रकार के घेवरों की दुकानें सजी हैं। खरीददार बड़ी मात्रा में घेवर खरीद रहे हैं।
नहीं रहे हैं वृक्ष, कहां झूलें झूला
विकास के नाम पर वृक्षों की जबरदस्त कटाई की जा रही है। ऐसे में वृक्ष ही नहीं हैं तो महिलाएं तीज पर झूला कैसे झूलेंगी। साईबर सिटी में असंख्य वृक्ष विकास के नाम पर काटे जा चुके हैं और यह सिलसिला आज भी जारी है। महिलाओं को मेले प्रबंधनों व स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा आयोजित आयोजनों में ही झूला झूलने पर विवश होना पड़ता है।
श्रृंगार का सामान खरीदने वाली महिलाओं लगी है भीड़
महिलाएं 16 श्रृंगार कर इस पर्व को धूमधाम से मनाती हैं और झूला झूलकर मल्हार भी गाती हैं। हालांकि इस पर्व का अब प्राचीन महत्व धीरे धीरे कम ही होता जा रहा है। क्योंकि जिन वृक्षों पर महिलाएं झूला डालकर झूलती थी, वे सब अब विकास की भेंट चढ़ गए हैं। ऐसे में महिलाएं कहां झूला झूलें। आधुनिकता के दौर व बदलते परिवेश में झूला झुलाने की व्यवस्था अब कुछ सामाजिक संस्थाओं व रिसोर्ट तथा फार्म हाउसों में होने लगी हैं। इस प्रकार के आयोजन महिलाओं की पहुंच से दूर होते जा रहे हैं। शहर के मुख्य सदर बाजार में श्रृंगार व प्रसाधनों की दुकानों पर महिलाओं की भीड़ लगी हुई है। वे अपनी सामथ्र्यनुसार श्रृंगार का सामान खरीदती दिखाई दे रही हैं।
घेवर का है बड़ा महत्व
मिष्ठान भण्डारों पर भी खरीददार बड़ी संख्या में दिखाई दे रहे हैं। सावन माह का प्रसिद्ध मिष्ठान घेवर खरीदने वालों का तांता मिष्ठान भण्डारों पर लगा है। घेवर का महत्व सावन माह में और भी अधिक बढ़ जाता है। यह ऐसा मिष्ठान है, जो मात्र सावन माह में ही बनाया जाता है। इसका स्वाद सावन माह में ही आता है। हालांकि अब विवाह शादियों में 12 माह घेवर देखने को मिल जाता है, लेकिन सावन जैसा स्वाद उस घेवर में भी नहीं होता। सदर बाजार में दुकानदारों ने महिलाओं के श्रृंगार से संबंधित कई वैरायटी बाजार में उतारी हुई हैं। दुकानदारों का भी कहना है कि हरियाली तीज के पर्व पर उनकी अच्छी खासी दुकानदारी होगी।