गुडग़ांव, जब तक गुरु के प्रति श्रद्धा व निष्ठा नहीं
होगी, तब तक
ज्ञान नहीं मिलेगा। जिंदगी में गुरु की बड़ी जरुरत है।
क्योंकि गुरु
न हो तो ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग कौन दिखाएगा? गुरु ही
हमें विश्व
से जुडऩे और सफल होने की सीख देते हैं। यह कहना है
गीताज्ञानेश्वर
डा. स्वामी दिव्यानंद महाराज का। जो उन्होंने आज रविवार
को आयोजित
होने वाले गुरु पूर्णिमा यानि कि गुरु पर्व पर आयोजित एक
ऑनलाइन कार्यक्रम
में कही। उनका कहना है कि गुरु और गोविंद (ईश्वर) एक
साथ खड़े हो
तो पहले किसको प्रणाम करना चाहिए? प्राचीन काल से ही यही
उत्तर रहा
है कि गुरु के चरणों में ही झुकना उत्तम है, जिनकी कृपा से
ईश्वर के दर्शन
हो जाते हैं। कहा भी जाता है कि गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु
ही विष्णु
है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात् परम ब्रह्म है।
उनका कहना
है कि गुरु की महिमा अपार है। संत तुलसीदास ने भी गुरु को
भगवान से भी
श्रेष्ठ माना है। उन्होने रामचरितमानस में भी लिखा है कि भले
ही कोई ब्रह्मा,
शंकर के समान क्यों न हो, लेकिन वह गुरु के बिना भवसागर
पार नहीं कर
सकता। गुरु मनुष्य रुप में नारायण ही हैं। महायोगी अरविंद का
भी कहना है
कि अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर्माली होते हैं। वे
संस्कारों
की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच
कर महाप्राण
शक्तियां बनाते हैं। उनका ये भी कहना है कि जिन शिष्य ने
गुरु के प्रति
शंका शुरु कर दी, तो ये समझ लीजिएगा कि उसी दिन से शिष्य
का पतन शुरु
हो जाता है। महाराज जी का कहना है कि वर्तमान के संदर्भ में
यदि गुरु शिष्य
के संबंध देखें तो यह बड़ी बिड़ंबना है कि दोनों के बीच
वैसे मर्यादित
और स्नेह पूर्ण संबंध तो दूर की बात हैं, सहज संबंध भी
नहीं मिलते।
इसके लिए कोई एक नहीं, दोनों ही जिम्मेदार हैं। कारण चाहे जो
भी हों, फिर
भी हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि जब तक गुरु के प्रति
श्रद्धा व
निष्ठा नहीं होगी, तब तक ज्ञान नहीं मिलेगा। कोरोना वायरस के
चलते मंदिरों,
शिवालयों व आश्रम सभी बंद हैं। इसलिए यह पर्व लोग
अपने-अपने
घरों में ही अपने-अपने तरीकों से मनाएंगे।
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