गुडग़ांव, हमारे समाज में प्राचीन काल से ही शुभ-अशुभ पर
अधिक विचार किया जाता रहा है और यह परंपरा आज भी प्रचलित है। हर अच्छे
काम के लिए शुभ मुहूर्त की तलाश होती है। ये शुभ मुहूर्त अक्सर नए काम का
आमंत्रण देते हैं, लेकिन शुभ मुहूर्त के निर्धारण में ग्रहों की बड़ी
भूमिका होती है। ज्योतिषाचार्य राजीव पाठक का कहना है कि मुहूर्त समय
ज्ञात करने का एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा हम कोई भी शुभ कार्य करने
के लिए योजना बना सकते हैं। शुभ मुहूर्त में किया कोई भी मांगलिक कार्य
बिना किसी व्यवधान के संपन्न हो जाता है और वह सदैव शुभ फलदायी भी होता
है। उनका कहना है कि सनातन धर्म के अनुसार किसी भी शुभ कार्य को करने से
पहले शुभ योग अवश्य देखना चाहिए। शुभ योग निकालने के लिए तिथि, वार,
नक्षत्र, योग, कर्ण व नवग्रहों की स्थिति आदि का अध्ययन होता है। यदि
इनमें से किसी दिन कोई स्थिति हो, तो उस दिन मांगलिक कार्य नहीं किया
जाता। उनका कहना है कि रविवार व मंगलवार नंदा तिथि, सोमवार व शुक्रवार को
भद्रा तिथि, बुधवार को जया तिथि, वीरवार को रिश्ता तिथि और शनिवार को
पूर्णा तिथि का होना अशुभ योग माना गया है। किसी भी शुभ कार्य को करते
समय राहू काल भी ध्यान रखना चाहिए। ज्योतिषाचार्य का कहना है कि विवाह के
शुभ मुहूर्त के शुभ योग के लिए बृहस्पति, शुक्र व सूर्य ग्रहों का शुभ
होना आवश्यक है। बृहस्पति व सूर्य का योग रवि गुरु योग कहलाता है, जो
विवाह के लिए शुभ माना गया है। विवाह के लिए माघ, फाल्गुन, वैशाख,
ज्येष्ठ, आषाढ व आगहन मास को शुभ माना जाता है। उनका ये भी कहना है कि
शुभ मुहूर्त के लिए ग्रह दशाओं का ठीक होना भी जरुरी है। अगर ग्रह दशा
ठीक न हो तो भूलकर भी मांगलिक कार्य संपन्न नहीं करना चाहिए। देवशयनी
एकादशी से लेकर देशउठनी एकादशी के बीच के दिन सभी प्रकार के मांगलिक
कार्यों के लिए अशुभ माने गए हैं। पंडित जी का यह भी कहना है कि सनातन
धर्म में दान देने के लिए भी दिन निश्चित किए गए हैं। सूर्य का दान
रविवार को दोपहर में, चंद्र का दान सोमवार को सायं के समय, मंगल का दान
मंगलवार को दोपहर में, बुध का दान बुधवार को दोपहर में, बृहस्पति का दान
बृहस्पतिवार को सुबह के समय, शुक्र का दान शुक्रवार को सायं के समय, शनि
का दान शनिवार को दोपहर, राहू का दान शुक्रवार को सायं के समय और केतू का
दान मंगलवार को दोपहर के समय ही करना चाहिए।
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