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कावडिय़े आज गंगाजल से करेंगे महादेव का अभिषेक : पंडित राजनाथ

गुरुग्राम। सावन माह चल रहा है। भगवान शिव के प्रिय माह सावन में भक्तजन गौमुख, हरिद्वार, गंगोत्री आदि स्थलों से कावड़ लेकर अपने गंतव्य तक पहुंच चुके हैं। आज बड़ी धूमधाम से कावडिय़े भगवान शिव का अभिषेक करेंगे। यह यात्रा श्रद्धा, भक्ति, और तपस्या का प्रतीक है। पौराणिक कथाओं में भी कावड़ यात्रा का वृतांत मिलता है। ज्योतिषाचार्य पंडित राजनाथ का कहना है कि कई कथाएं कावड़ यात्रा से जुटी हैं।  समुद्र मंथन : एक पौराणिक कथा के अनुसार, कांवड़ यात्रा की शुरुआत समुद्र मंथन से हुई थी। जब समुद्र मंथन से विष निकला तो भगवान शिव ने उसे ग्रहण किया। विष की ज्वाला से बचने के लिए, देवताओं ने शिव को गंगाजल चढ़ाया, जिससे शिव को शांति मिली। इसी घटना को कांवड़ यात्रा का आधार माना जाता है।
परशुराम : एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान परशुराम ने पहली बार कांवड़ यात्रा की थी। उन्होंने गंगाजल लाकर भगवान शिव को अर्पित किया था, जिससे उन्हें विष के प्रभाव से मुक्ति मिली।
रावण : कुछ कथाओं में, रावण को भी कांवड़ यात्रा करने वाला बताया गया है। कहा जाता है कि रावण ने भी भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कांवड़ यात्रा की थी।
कांवड़ यात्रा का महत्व
भक्ति और श्रद्धा : कांवड़ यात्रा भगवान शिव के प्रति अटूट भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है।
तपस्या : यह यात्रा कठिन होती है, जिसमें भक्त पैदल चलकर, उपवास रखकर और अन्य कठिनाइयों का सामना करते हुए अपनी भक्ति प्रकट करते हैं।
शुद्धिकरण : गंगाजल से शिव का अभिषेक करने से भक्तों का मन और शरीर शुद्ध होता है, ऐसा माना जाता है।
मोक्ष की प्राप्ति : कुछ लोगों का मानना है कि कांवड़ यात्रा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कांवड़ यात्रा का आधुनिक स्वरूप : आजकल, कांवड़ यात्रा लाखों भक्तों द्वारा की जाती है, जो पूरे भारत से हरिद्वार, गौमुख और गंगोत्री जैसे स्थानों पर जाते हैं। यह यात्रा श्रावण के महीने में होती है, जो हिंदू कैलेंडर का एक पवित्र महीना है। भक्त कांवड़ में गंगाजल भरकर लाते हैं और अपने आस-पास के शिव मंदिरों में जलाभिषेक करते हैं। यात्रा के दौरान, कांवडिय़े बम बम भोले और हर हर महादेव के जयकारे लगाते हैं, जिससे वातावरण भक्तिमय हो जाता है। कांवड़ यात्रा, एक प्राचीन परंपरा है, जो आज भी लाखों लोगों की आस्था और श्रद्धा का केंद्र बनी हुई है।