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आस्था का महापर्व छठ का नहाय-खाय के साथ शुरु हो गया आयोजन

गुरुग्राम। सूर्य देव की उपासना के 4 दिवसीय महा पर्व का शनिवार को नहाय-खाय के साथ शुभारंभ हो चुका है। महापर्व के पहले दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को महिलाओं ने व्रत का संकल्प लिया और पूरी शुद्धता के साथ लौकी की सब्जी, अरवा चावल व चने की दाल का प्रसाद भी बनाया। घरों में व्रती के भोजन के बाद ही परिवारों के बाकी सदस्यों ने भोजन ग्रहण किया। शास्त्रों में इसका विशेष संयोग माना जाता है। पूर्वांचल मूल के लोगों का सदर बाजार व शहर के अन्य स्थानों पर लगे बाजारों में भारी जमावड़ा लगा दिखाई दिया। ये लोग छठ पूजा में इस्तेमाल होने वाली सामग्री बाजारों से खरीदते रहे। दुकानदारों ने भी पूजा सामग्री की पूरी व्यवस्था की हुई है। हालांकि इस बार पूजा सामग्री के गत वर्ष की अपेक्षा 50 प्रतिशत महंगी हुई बताई जाती है।
सरोवरों का निर्माण युद्ध स्तर पर
सूर्य को अध्र्य देने के लिए शीतला माता मंदिर पार्किंग के अलावा सिकंदरपुर, बजीराबाद, चकरपुर, सैक्टर 4/7, देवीलाल कालोनी, सरस्वती एंक्लेव, राजेंद्रा पार्क, स्नेह विहार, भीमगढ़ खेड़ी, गुडगांव गांव, कादीपुर, सैक्टर 10ए, बसई तालाब, सूरत नगर, मारुति कुंज सहित दर्जनों स्थानों पर अस्थायी तालाब भी बनाए जा रहे हैं। विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने तालाब निर्माण कार्य का जायजा लिया। आज से इन तालाबों में पानी भरने की प्रक्रिया शुरु करा दी जाएगी। नगर निगम प्रशासन भी पूरा सहयोग कर रहा है। इन तालाबों में खड़े होकर ही व्रतधारी सूर्य को अध्र्य देंगे। जहां व्रतधारी सोमवार को सांध्यकालीन अध्र्य देंगे, वहीं मंगलवार की प्रात: सूर्य को अध्र्य दिया जाएगा।
विधि-विधान से दिया जाएगा अध्र्य
संस्थाओं के प्रतिनिधियों का कहना है कि सूर्य को अध्र्य देने के समय सूप में फलादि रखकर उन्हें पीले वस्त्र से ढक देना चाहिए और सूप के पास दीपक जलाकर रखना चाहिए तथा व्रतधारियों को मंत्रोच्चारण भी करना चाहिए। उसके बाद ही सूर्य को अध्र्य दिया जाना चाहिए।
आस्था का महापर्व है छठ
छठ पर्व को आस्था का महापर्व माना जाता है। आज रविवार को खरना पर्व होगा। सोमवसार को सांध्यकालीन अध्र्य दिया जाएगा और मंगलवार की प्रात: उगते हुए सूर्य को अध्र्य देकर श्रद्धालु छठ पर्व का समापन करेंगे।
सूर्य की प्रतिमा भी होगी स्थापित
श्रद्धालु भगवान सूर्य की प्रतिमा की उपासना करेंगे। पुराणों में भी छठ पर्व की महत्ता का उल्लेख मिलता है। शिव पुराण, ब्रह्म वैव्रत पुराण, भविष्य पुराण, मार्कण्डेय पुराण के साथ कई अन्य श्रुतियों व उपनिषदों में भी इस पर्व के महत्व का वर्णन किया गया है। भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण के कालखण्ड में भी श्रद्धापूर्वक भगवान भास्कर की पूजा की जाती थी। मगध के साथ ही अन्य कई प्राचीन महत्वपूर्ण राज्यों के इतिहास के साथ इस लोकपर्व की कडियां जुड़ी हुई हैं। पाण्डवों ने भी अपना राज्य प्राप्त करने के लिए छठ पूजा की थी।
गौरतलब है कि पूर्वांचल मूल के लाखों परिवार गुडगांव में पिछले कई दशकों से निवास करते आ रहे हैं। डेढ दशक पूर्व तक ये परिवार अपना छठ उत्सव मनाने के लिए पूर्वांचल जाते थे, क्योंकि गुडगाव में इस प्रकार के आयोजन कम ही होते थे। इन परिवारों ने संगठित होकर पूर्वांचल समाज को एक साथ जोड़ा। समाज का प्रतिनिधित्व करने के लिए कई सामाजिक संगठनों का भी गठन किया गया। पूर्वांचल के इन संगठनों ने छठ महोत्सव का आयोजन प्रति वर्ष करने का निश्चय किया।