गुडग़ांव, आज भले ही गुरूदेव और शिष्य का संबंध केवल एक
परंपरा बनकर रह गया हो और यह परंपरा भी आध्यात्मिक कम, राजनीतिक तथा
सामाजिक अधिक दिखाई देती है। यह घटना नहीं अपितु आद्यात्मिक मार्ग में एक
दुर्घटना के समान ही है। आध्यात्मिक मार्ग में कथनी और करनी में कोई अंतर
नहीं होता। उक्त उद्गार हरिद्वार तपोवन के गीताज्ञानेश्वर डा. स्वामी
दिव्यानंद महाराज ने वीरवार को ज्योति पार्क स्थित श्रीगीता आश्रम में 3
दिवसीय सद्गुरु आराधना पर्व के उपलक्ष्य में आयोजित दिव्य सत्संग में
व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हम लोग आपस में पूरे दिन बड़ी-बड़ी बातें
करते हैं, लेकिन इन बातों का अपने जीवन में किसी प्रकार का कोई समावेश
नहीं करते। ज्ञान केवल वाद-विवाद और प्रदर्शन करने वाला नहीं होता, यह तो
मूढता को समाप्त करने का शस्त्र है। महाराज जी ने कहा कि ज्ञान को साधारण
भाषा में भी यदि विचार किया जाए तो आत्मा अविनाशी है और शरीर नाशवान है।
शरीर यदि क्षण भंगुर है तो आत्मा अजर-अमर है। अज्ञानता का निवारण गुरूदेव
कृपा से ही संभव है। कार्यक्रम का शुभारंभ पादुका पूजन से हुआ। इस अवसर
पर समिति से जुड़े राजेश गाबा, वेद आहुजा, मोहन कृष्ण भारद्वाज, ईश
अरोड़ा, चरणजीत अरोड़ा व गणमान्य व्यक्ति व श्रद्धालु भी शामिल रहे और
उन्होंने महाराज जी से आशीर्वाद भी प्राप्त किया।
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