गुरुग्राम। आज से श्राद्ध पक्ष शुरु हो रहा है। प्राचीन काल से पूर्वजों को तर्पण और उनके प्रति श्रद्धाभाव व्यक्त करने के लिए
भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से लेकर अश्विन माह की सर्वपितृ अमावश्या तक का समय पितृ पक्ष कहलाता है। कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान हमारे
पूर्वज पितृलोक से धरती पर अपने प्रियजनों के पास आते हैं। ऐसे में पितृ
पक्ष पर उनके प्रति सम्मान और आदर भाव दिखाने के लिए उन्हें तर्पण दिया
जाता है। मान्यता है कि पितृ पक्ष पर श्राद्ध कर्म करने पर पितृ दोषों से
मुक्ति मिल जाती है। पितृ पक्ष में जब पितृ देव धरती पर आते हैं तो
उन्हें प्रसन्न कर फिर से पितृ लोक में विदा किया जाता है। पितृ पक्ष के
दौरान कुछ सावधानियां बरती भी जानी चाहिए। ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि
श्राद्ध पक्ष में अगर कोई भोजन पानी मांगने आए तो उसे खाली हाथ न जाने
दें। मान्यता है कि पितृ किसी भी रुप में अपने परिजनों के बीच आ सकते
हैं। गाय, कुत्ता, बिल्ली, कौआ इन्हें श्राद्ध पक्ष में नहीं मारना
चाहिए, अपितु इनकोा खाना देना चाहिए, मांसाहारी व मदिरा आदि का सेवन पितृ
पक्ष के दौरान नहीं करना चाहिए। परिवार में आपसी कलह से बचें, जो भी भोजन
बनाएं उसमें से एक हिस्सा पितृों के नाम पर निकालकर गाय या कुत्ते को
खिलाना चाहिए, स्वर्ण आभूषण व नए वस्त्रादि इस दौरान नहीं खरीदने चाहिए,
कुल की मर्यादा के विरुद्ध कोई आचरण न करें। ज्योतिषाचार्यों का यह भी
कहना है कि यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु पूर्णिमा को हो तो उसका श्राद्ध
भाद्र शुक्ल पूर्णिमा को करना चाहिए। सन्यासियों का श्राद्ध पार्वण
पद्धति से द्वादशी में किया जाता है। भले ही इनकी मृत्यु तिथि कोई भी
क्यों न हो। अकाल मृत्यु वालों, यानि कि वाहन दुर्घटना, सांप के काटने
से, विषैले पदार्थ के सेवन से या किसी भी अन्य पदार्थ से जिसकी मृत्यु
हुई हो, उसका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि में किया जाना चाहिए।
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