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अदालत ने निजी स्कूल से दिलाई बच्ची को एसएलसी

गुरुग्राम। सरकार ने  शिक्षा का अधिकार कानून 2009 बना तो दिया परंतु उस कानून की पालना नहीं नहीं हो पा रही है। बच्चों को शिक्षा का अधिकार के लिए न्यायालयों का सहारा लेना पड़ रहा है। अगर कही स्कूल और अभिभावकों के बीच कोई विवाद है तो बच्चों को तो परेशान नहीं किया जाना चाहिए। यह कहना है वरिष्ठ अधिवक्ता कैलाश चंद्र का। उन्होंने स्कूल व बच्चों के विवाद का जिक्र करते हुए कहा कि गांव सुलखा जिला रेवाड़ी के रविंद्र कुमार की नाबालिक पुत्री जो कि पिछले वर्षों से द वल्र्ड विज्डम स्कूल नैचाना में शिक्षा ग्रहण करतीं आ रही थी। बच्ची के अभिभावक द्वारा स्कूल की सभी फीस भरी जाती रही है। इस वर्ष बच्ची ने राजकीय स्कूल सुलखा में अस्थाई दाखिला लेकर शिक्षा ग्रहण करना शुरू दिया और पिछले निजी स्कूल से स्कूल छोडऩे का प्रमाण पत्र की मांग की गई, लेकिन स्कूल ने एसएलसी देने के लिय मना कर दिया, जिसके बाद बच्ची के पिता ने जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय में शिकायत दी। लेकिन अधिकारियों ने बच्ची की समस्या का समाधान नहीं कराया। पिता के आग्रह पर उन्होंने न्यायालय में द वल्र्ड विज्डम स्कूल और जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी और बच्ची का अस्थाई दाखिला को स्थाई कराने के लिए राजकीय हाई स्कूल सुलखा के खिलाफ मामला दायर कर दिया। जिसकी सुनवाई सिविल जज आदित्य सैनी की अदालत में हुई। सभी पक्षों ने अदालत में अपनी अपनी बात रखी। अदालत स्कूल के खिलाफ कोई फैसला न दे दे इस डर से स्कूल प्रबंधन ने बच्ची की एसएलसी अदालत के सुपुर्द कर दी। अदालत ने पीडि़त पक्ष को एसएलसी दे दी और पीडि़ता के पिता ने एसएलसी राजकीय हाई स्कूल में जमा कर दी है। इस प्रकार अदालत से ही पीडि़त बच्ची को न्याय मिल सका है। अधिवक्ता का कहना है कि इस प्रकार के अन्य मामले भी हैं, जिनकी वे पैरवी कर पीडि़त पक्ष को न्याय दिला रहे हैं। उन्होंने सरकार से भी आग्रह किया है कि शिक्षा विभाग निजी स्कूलों की कार्यप्राली को निर्देशित करें, ताकि छात्र नाहक ही परेशान होने से बच सकें।