NCRअध्यात्मदेशराज्य

सांग कला जूझ रही है अपने अस्तित्व को बचाने मेंगौशाला में चल रहा है स्वांग का आयोजन

गुरुग्राम, प्राचीन काल से ही विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों
में रहने वाले लोगों का मनोरंजन स्वांग (सांग) के माध्यम से पौराणिक
कथाओं का मंचन कलाकार करते रहे हैं। हालांकि स्वांग आज अपने अस्तित्व
बचाने की लड़ाई लड़ रहा है, लेकिन सांग कला को जन-जन तक पहुंचाने को
प्रसिद्ध सांग कलाकार पंडित लख्मी चंद के पौत्र विष्णु दत्त शर्मा निरंतर
प्रयासरत हैं। उनकी कलाकार पार्टी गौशाला में पिछले कई दिनों से मकर
सक्रांति के पर्व पर सांग का मंचन कर रही है। विष्णु दत्त शर्मा का कहना
है कि आगामी 17 जनवरी तक यह सांग चलेगा। पौराणिक दंत कथाओं, हकीकत और
काल्पनिक कथाओं पर आधारित सांग के जरिए इस कला का प्रदर्शन प्राचीन कला
से चला आ रहा है। वर्तमान पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जोडऩे का यह एक
बेहतर माध्यम है। उनका कहना है कि सांग में सेठ ताराचंद, सरदार चाप सिंह,
पदमावत, सत्यवान सावित्री, राजा नल, सत्यवादी राजा हरीशचंद्र, मीरा बाई,
भगत पूर्ण मल, महाभारत का चीर पर्व और विराट पर्व तथा शाही लक्कड़हारा के
प्रसंगों पर कलाकार सांग का मंचन कर रहे हैं। पौराणिक वाद्य यंत्रों की
मीठी-मीठी स्वर लहरियों के बीच जब दोपहर बाद यहां सांग शुरू होता है तो
लोगों की भीड़ लगनी शुरू हो जाती है।  हुक्के पर अपनी राजी-खुशी की बात
करते-करते कब घंटों बीत जाते हैं, उन्हें पता ही नहीं चलता। इसके बाद
सांग शुरू होता है, जो कि 4 बजे तक चलता है। 0उनके द्वारा गायी जाने वाली
रागनियों, बोले जाने वाले डायलॉग में महिलाओं का किरदार निभा रहे पुरुष व
अन्य कलाकार भी सुर में सुर मिलाते हैं। हर कलाकार के दमदार अभिनय पर लोग
भी यहां खुलकर दान दे रहे हैं। सांग एक ऐसा मनोरंजन का साधन है, जो कि
जनता के बीच में होता है। उनका कहना है कि हरियाणा के अलावा, दिल्ली,
यूपी और राजस्थान में भी वे सांग का प्रदर्शन करते हैं, लेकिन सरकार की
ओर से इस कला को जीवित रखने के लिए जो प्रयास किए जाने थे, वे नहीं हो
पाए। उनका यही प्रयास है कि सांग की परंपरा को कैसे भी हो जीवित रखा जाए।

Comment here