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सद्गुरु की आज्ञा में ही निहित है समस्त साधनाओं का रहस्य-डा. स्वामी दिव्यानंद महाराज

गुडग़ांव, दिव्य सुख-शांति के द्वार खोलने के लिए
तत्वज्ञानी सद्गुरु देव का उपदेश अनिवार्य है। जीवन में उनके उपदेशों का
अपरोक्ष अनुभव हो जाना ही सद्गुरु भक्ति योग है। इसी योग में ही दिव्य
आनंदमय योग का प्रारंभ होता है। बिना  शर्त पूर्णतया: गुरु के प्रति
आत्मसमर्पण ही शिष्य का धर्म माना जाता है। उक्त उद्गार गीताज्ञानेश्वर
डा. स्वामी दिव्यानंद महाराज ने गुरु पर्व पर शनिवार को शिष्यों से कही।
उन्होंने कहा कि सद्गुरु कृपा अनिवार्य है। मंत्र दीक्षा तो साधन है।
हमें गुरुदेव से दीक्षा तो तत्वज्ञान और भक्ति साधना की ही लेनी है।
अनन्य भक्ति और अपरोक्ष ज्ञान ये दोनों एक ही साधना के 2 नाम हैं।
उन्होंने कहा कि सद्गुरु भक्ति योग सांसारिक पदार्थों की प्राप्ति के लिए
नहीं अपितु भगवान प्राप्ति के लिए ही होता है। जबकि आधुनिकता के इस दौर
और बदलते परिवेश में आज लोगों की दृष्टि में अच्छे गुरु की पहचान जिसके
पास धनंजन और प्रतिष्ठा का साम्राज्य खड़ा हो वही अच्छा गुरु माना जाता
है। महाराज जी ने कहा कि सद्गुरु की आज्ञा में ही समस्त साधनाओं का रहस्य
निहित है। इसलिए सच्चे गुरु की आज्ञा का पालन करना जरुरी है। उनका
सानिध्य पाकर आद्यात्मिक उन्नति की ओर बढऩा चाहिए। सद्गुरु के सानिध्य से
आत्मकल्याण की साधना का मार्ग प्रशस्त होता है। उनके सानिध्य में ही गीता
और रामायण जैसे ग्रंथों का भी साक्षात्कार हो जाता है। उन्होंने साधकों
से कहा कि गुरुदेव के पास चमत्कारों के नाम पर उन्हें एक नया जगत नहीं
खड़ा करना चाहिए। गुरु पर्व पर साधकों ने पूजा-अर्चना भी कोरोना के
दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए की।

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