गुडग़ांव, देश के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को फहराता देख
हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है। कोई उत्सव हो, चाहे राष्ट्रीय
हो या अंतर्राष्टीय स्तर का या किसी स्कूल परिसर में कोई उत्सव मनाया जा
रहा हो तो सभी उत्सवों पर तिरंगा झण्डा फहराया जाता है, जिससे हर भारतीय
गर्व और जोश का एहसास करता है। देश को एकसूत्र में बांधने का यह कार्य
राष्ट्र ध्वज कई दशकों से करता आ रहा है। राष्ट्रीय ध्वज कई देशभक्तों की
सोच व मेहनत का परिणाम है। वर्ष 1947 की 22 जुलाई को राष्ट्रीय ध्वज
अपनाया गया था, तभी से इस दिन को ध्वज अंगीकरण दिवस के रुप में मनाया
जाता है। यह कहना है भ्रष्टाचार उन्मूलन में जुटी सामाजिक संस्था क्राईम
रिफार्मर एसोसिएशन के अध्यक्ष डा. संदीप कटारिया का। उनका कहना है कि
राष्ट्रीय ध्वज की सोच कई देशभक्तों की मेहनत का परिणाम ही है।
आंध्रप्रदेश के मच्छलीपट्टम में जन्मे पिंगली वैंकय्या महान स्वतंत्रता
सैनानी व कृषि वैज्ञानिक थे। कहा जाता है कि पिंगली ब्रिटिश सेना में
कार्यरत थे। उस दौरान लगभग सभी देशों के ध्वज थे, लेकिन भारत का कोई ध्वज
नहीं था। डा. कटारिया का कहना है कि पिंगली के मन में विचार आया कि क्यों
न भारत देश का भी ध्वज हो। पिंगली की मुलाकात महात्मा गांधी से भी हुई थी
और उन्होंने महात्मा गांधी से देश का अलग राष्ट्र ध्वज होने की बात कही
थी। गांधी जी ने भी इसका समर्थन किया था। पिंगली ने अंग्रेजों की नौकरी
छोड़ देश का राष्ट्रीय ध्वज तैयार करने की दिशा में काम शुरु किया था।
बताया जाता है कि उन्होंने 30 देशों के राष्ट्रीय ध्वज के बारे में
जानकारी हासिल की। करीब 5 साल के गहन अध्ययन के बाद तिरंगे का डिजायन
तैयार किया गया। उनका कहना है कि हालांकि देश में पहले भी कई ध्वज मौजूद
थे, लेकिन पिंगली एक ऐसा ध्वज चाहते थे, जो पूरे राष्ट्र को एकसूत्र में
बांधकर रख सके। बताया जाता है कि सदभावना को ध्यान में रखते हुए उस समय
तिरंगे में लाल रंग हिंदू धर्म का, हरा रंग मुस्लिम धर्म का और सफेद बाकी
धर्मों के प्रतीक के रुप में निश्चित किए गए थे। तिरंगे के बीच में चरखे
को स्थान दिया गया था। हालांकि तिरंगे के डिजायन में कुछ संशोधन करते हुए
लाल रंग की जगह केसरिया और चरखे की जगह 24 तीलियों वाले अशोक चक्र को
स्थान दिया गया। अशोक चक्र का आशय गतिशील जीवन से माना गया और इन सब
बदलावों के साथ 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा में इसे राष्ट्रीय ध्वज के
तौर पर अपना लिया गया। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को अहिंसा और
देश की एकता का प्रतीक मानते थे। उनका मानना था कि तिरंगा सभी धर्मों का
प्रतिनिधित्व करता है। डा. कटारिया का कहना है कि पिंगली वैंकय्या को
देशवासियों व देश की सरकार ने भुला कर रख दिया था और 4 जुलाई 1963 को
बड़ी दयनीय हालत में उनका निधन हुआ था। हालांकि वर्ष 2009 में केंद्र
सरकार ने उनके नाम से एक डाक टिकट भी जारी किया है। तभी देशवासियों को
पता चल सका था कि वे पिंगली ही थे, जिन्होंने देश को राष्ट्रीय ध्वज
तिरंगा दिया था।
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