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बाबा रामदेव व आईएमए में चला आ रहा है एलोपैथी को लेकर विवाद

गुरूग्राम, पिछले डेढ़ वर्ष से पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझता चला आ रहा है। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है। देश के सभी प्रदेशों को कोरोना महामारी का सामना करना पड़ रहा है। कोरेाना की दूसरी
लहर ने सबकुछ प्रभावित कर डाला है। जितनी मानवीय मौतें कोरोना की दूसरी
लहर में हुई हैं, उन्होंने मानव समाज को झकझोर दिया है। ऐसे समय में जब
देश कोरोना से जूझ रहा है। योग गुरु बाबा रामदेव एलोपैथी पद्धति पर सवाल
उठा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने कड़े परिश्रम के बाद
कोरोना वैक्सीन तैयार कराई है और देशवासियों को गत जनवरी माह से भी
वैक्सीन लगाई जा रही है। यह वैक्सीन एलोपैथिक पद्धति से ही तैयार की गई
है और इसको कोरोना से बचाव के लिए रामबाण भी बताया जा रहा है। ऐसे में
एलोपैथी पर सवाल उठाकर कोरोना महामारी में एक विवाद खड़ा कर दिया गया है।
एलोपैथी पद्धति की वकालत करने वाले आईएमए और बाबा रामदेव में चला आ रहा
विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। वास्तव में ऐसे समय सारा देश कोरोना
महामारी की घातक दूसरी लहर से जूझ रहा है, एलोपैथी व आयुर्वेद जैसी नौबत
आनी ही नहीं चाहिए थी। योग गुरु रामदेव जिन्होंने एलोपैथी को तमाशा और
बेकार बताया था, उस पर चिकित्सा जगत में तीखी प्रक्रिया होनी स्वभाविक ही
थी। योग गुरु के खिलाफ आईएमए ने महामारी रोग अधिनियम के तहत कार्यवाही
करने तक की मांग भी कर डाली। कोरोना महामारी के उपचार में आधुनिक चिकित्सा पद्धति एलोपैथी के माध्यम से ही किया गया है और आगे भी इसी पद्धति से उपचार किया जाता रहेगा। जानकारों का यह भी कहना है कि बाबा रामदेव को यह नहीं भूलना चाहिए कि गत वर्ष आयुष मंत्रालय के ऐतराज के बाद
उन्होंने कोरोना की अपनी दवा कोरोनिल के बारे में किए जा रहे दावों को
वापिस लेना पड़ा था। जानकारों का यह भी कहना है कि चिकित्सा जगत बाबा
रामदेव से यह अपेक्षा रखता है कि वह वैज्ञानिक कसौटी पर कसने के बाद ही
कोई अवधारणा जनता के सामने रखें, उसका अच्छा प्रभाव होगा। बाबा रामदेव
योग गुरु के रुप में देश में ही नहीं, अपितु विदेशों में भी स्थापित होकर
अच्छी खासी प्रतिष्ठा अर्जित कर चुके हैं, ऐसे में उनकी बयानबाजी का व्यापक असर होता है।

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