गुडग़ांव, कोरोना के बढ़ते प्रकोप से जिलेवासियों को निजात
दिलाने के लिए जिला प्रशासन जुटा हुआ है। कोरोना के इस दौर में यह स्पष्ट
हो गया है कि यदि इच्छाशक्ति प्रबल है तो मनुष्य विषम से विषम
परिस्थितियों का सामना भी कर सकता है। आधुनिकता के इस दौर व बदलते परिवेश
में लोग प्राचीन स्वास्थ्य पद्धति को भूल गए थे, लेकिन कोरोना ने प्राचीन
आयुर्वेदिक स्वास्थ्य पद्धति की फिर से याद दिला दी है। प्राचीन काल में
जटिल से जटिल बीमारियों का उपचार आयुर्वेदिक पद्धति से किया जाता था।
ऋषि-मुनियों की इस धरती पर बड़ी मात्रा में जड़ी-बूटियां थी, उन्हीं से
लोगों का इलाज होता था। कोरोना महामारी की कोई अचूक औषधि अभी तक नहीं बन
पाई है। हालांकि वैज्ञानिक अनुसंधान में जुटे हुए हैं। देश व प्रदेश की
सरकारों ने भी आयुर्वेद पद्धति को कोरोना के इस दौर में अपनाया है।
आयुर्वेदिक काढ़े के सेवन से कोरोना पॉजिटिव मरीजों को लाभ पहुंच रहा है।
केंद्र सरकार के आयुष विभाग द्वारा तैयार किए गए आयुर्वेदिक काढ़े का
कमाल ही है कि कोरोना पॉजिटिव मरीज स्वस्थ हो रहे हैं। कई सामाजिक व
धार्मिक संस्थाएं भी आयुर्वेदिक काढ़े को तैयार कर कोरोना पीडि़तों तक
पहुंचा रहे हैं। इन संस्थाओं का कहना भी है कि यदि किसी को कोरोना हुआ भी
नहीं है तो वह भी सुरक्षात्मक दृष्टि से इस काढ़े का सेवन कर सकता है। जो
कोरोना से बचाने में काफी लाभदायक साबित होगा। उनका कहना है कि इस काढ़े
में घर की रसोई में इस्तेमाल होने वाली अधिकांश मसाले हैं। जड़ी-बूटियों
का योगदान भी इस काढ़े में कम नहीं हैं। समाजसेवी अरविंद सैनी का कहना है
कि आयुर्वेदिक काढ़े में जहां जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया गया है,
वहीं गिलोय, नीम, दालचीनी आदि का मिश्रण भी शामिल है। काढ़े के अलावा
गोलियां भी बनाई गई हैं, जो कोरोना संक्रमित मरीजों को दी जा रही हैं।
उनका कहना है कि गिलोय की गोलियां जहां जिले के विभिन्न क्षेत्रों में
पहुंचाई गई हैं, वहीं कोरोना योद्धाओं को भी उनकी इम्युनिटी बढ़ाने के
लिए बड़ी मात्रा में उपलब्ध कराई गई हैं। उनका यह भी कहना है कि कोरोना
के दौरान आम लोगों का आयुर्वेदिक औषधियों पर विश्वास अधिक बढ़ा है। इन
आयुर्वेदिक काढ़े व गोलियों का सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहा है।
अधिकांश लोग इनका नियमित रुप से सेवन कर कोरेाना को मात देने में जुटे
हैं।
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