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नोटबंदी के हुए 3 साल पूरे डिजिटल भुगतान के प्रति बढ़ी लोगों की रुचि कालेधन पर नहीं लग पाई रोक लोकसभा व विधानसभा चुनाव के दौरान पकड़ी गई अरबों रुपए की मुद्रा

गुडग़ांव, केंद्र सरकार द्वारा की गई नोटबंदी को 3 साल
पूरे हो गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कालेधन पर रोक लगाने के
लिए नोटबंदी की घोषणा करते हुए 500 व एक हजार रुपए के लगभग 99 फीसदी
नोटों को चलन से बाहर कर दिया था। इस नोटबंदी से कई क्षेत्रों पर विपरीत
प्रभाव भी पड़ा था और कई क्षेत्रों को इसका लाभ भी हुआ था। केंद्र सरकार
को अपने इस फैसले का विरोध भी झेलना पड़ा था, लेकिन प्रधानमंत्री ने किसी
की कोई परवाह नहीं की थी। 3 वर्ष पूर्व 8 नवम्बर को नोटबंदी के बाद आम
आदमी द्वारा बैंकों में धन जमा करने पर संकोच किया जाने लगा था। केंद्र
सरकार के डिजिटल लेन-देन का क्षेत्र भी बहुत बढ़ गया है। अधिकांश लोग
डिजिटल लेन-देन को ही अपना रहे हैं। वित्त मामलों से जुड़े पंकज वर्मा व
बीआर ग्रोवर का कहना है कि नोटबंदी के बाद बैंकों में धन जमा करने को
लेकर आम लोगों में तरह-तरह की शंका बढ़ गई हैं। उनका कहना है कि वर्ष
2011-12 से वर्ष 2015-16 तक बाजार में चल रही कुल नगदी की तुलना में
मात्र 9-12 प्रतिशत नगदी ही लोग अपने घरों में जमा करते थे। वर्ष 2017-18
में यह प्रवृति बढक़र 26 प्रतिशत हो गई है। उनका यह भी कहना है कि नोटबंदी
के बाद डिजिटल लेन-देन को काफी बढ़ावा भी मिला है। अरबों रुपए का डिजिटल
ट्रांजेक्शन भी हुआ है। नकली नोट भी काफी संख्या में बरामद किए गए हैं।
नोटबंदी की यह एक सफलता मानी जा सकती है।
सरकार के उद्देश्य नहीं हो पाए सफल
नोटबंदी के बाद जमाखोरों ने 2 हजार रुपए के नोट जमा करने शुरु कर दिए थे,
जिससे आरबीआई को 2 हजार रुपए के नोटों की छपाई भी रोकनी पड़ गई थी।
हालांकि सरकार ने डिजिटल लेन-देन को लेकर लोगों को काफी जागरुक भी किया
और लोगों ने इसे अपनाया था, लेकिन इस सब के बावजूद भी नगदी के प्रति
लोगों का आकर्षण कम नहीं हो पाया। डिजिटल भुगतान के प्रति बढ़ रहे लोगों
के रुझान को ऑनलाईन धोखाधड़ी के बढ़ते मामलों को अवश्य कम कर दिया। साईबर
सिटी में तो इस प्रकार के मामलों की बाढ़ सी आई गई और लोगों की रुचि फिर
से नगदी के चलन की ओर बढ़ती दिखाई दी। नोटबंदी के पीछे सरकार का सबसे
बड़ा तर्क यह था कि इससे कालेधन पर रोक लग जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
क्योंकि वर्तमान में हुए लोकसभा व विधानसभा चुनाव के दौरान अरबों रुपए की
(करेंसी) मुद्रा बरामद की गई है। इससे स्पष्ट होता है कि लोगों के पास
कालेधन की आज भी कोई कमी नहीं है।

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