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कोरोना महामारी ने आर्थिक भविष्य को भी रख दिया है बिगाड़ कर

गुरुग्राम, कोरोना महामारी ने जहां समाज व कारोबार को
प्रभावित कर रख दिया है, वहीं आर्थिक व्यवस्था भी इससे अछूती नहीं रही
है। कोरोना की दूसरी लहर में बड़ी संख्या में हर आयु वर्ग मौंत के मुंह
में पहुंचा है। ऐसे में वृद्धजनों की संपति को लेकर भी तरह-तरह के विवाद
उठने शुरु हो गए हैं। यानि कि कुछ मामले ऐसे मामले भी सामने आ रहे हैं,
जिनमें वृद्धजन किन्हीं कारणों से अपनी वसीयत नहीं लिख पाए थे और कोरोना
काल में वे मौंत के मुंह में चले गए। ऐसे में उनकी संपति को लेकर परिजनों
में विवाद उठना स्वभाविक है। वृद्धजन व परिजन भी यह अनुमान नहीं लगा पाए
थे कि कोरोना की दूसरी लहर इतना विकराल रुप धारण कर लेगी। वृद्धजनों जो
कोरोना के मुंह में चले गए हैं, अब उनके परिजन व उतराधिकारी उनकी संपति
को लेकर खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और वे नगर निगम, तहसील व
पटवारियों के कार्यालयों में चक्कर लगाते देखे जा रहे हैं। जानकारों का
कहना है कि यदि परिवार का मुखिया बीमार हो जाए तो परिजनों के सामने बड़ी
समस्या आ जाती हैं। कोरोना काल में ऐसा ही हुआ। लोगों को जितनी मदद मिलनी
चाहिए थी, वह नहीं मिल सकी और जब तक मदद के हाथ बढ़े भी तब तक बहुत देर
हो चुकी थी। जानकारों का कहना है कि ऐसी मुश्किल घड़ी में तत्काल मदद
करने वालों की जानकारी परिवार के मुखिया को अपने स्वजनों से साझा अवश्य
करनी चाहिए। कोरोना महामारी ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी थी कि पति-पत्नी को
एक दूसरे के बैंक अकाउंट तक के बारे में भी जानकारी नहीं थी। जानकारों का
कहना है कि पति-पत्नी का ज्वाईंट अकाउंट अवश्य होना चाहिए, ताकि जरुरत
पडऩे पर दोनों में से कोई भी बैंक से लेन-देन कर सके। उनका यह भी कहना है
कि जहां परिवार के मुखिया ने कहीं कोई निवेश किया हुआ है, उसकी जानकारी
भी परिजनों को विशेषकर उसकी धर्मपत्नी को अवश्य होनी चाहिए, ताकि उनकी
अनुपस्थिति में वे किसी भी प्रकार की असुविधा से बच सकें। परिजनों को
सुरक्षित रखने के लिए जीवन बीमा भी एक अच्छी योजना है। आज के युग में
चिकित्सा शुल्क में भी भारी वृद्धि हुई है। इसलिए यह आवश्यक है कि
स्वास्थ्य बीमा करा लिया जाए। हालांकि अस्पतालों का खर्च स्वास्थ्य बीमा
की धनराशि से काफी अधिक आता है, लेकिन फिर भी उपचार में थोड़ी बहुत
आर्थिक सहायता तो स्वास्थ्य बीमा से मिल ही जाती है। निजी अस्पतालों में
कोरोना पीडि़तों के उपचार पर कई-कई लाख खर्च हुए बताए जाते हैं। लाखों
खर्च करने के बाद भी कोरोना पीडि़त जिंदगी की जंग हार गए। जानकारों का यह
भी कहना है कि कोरोना काल में बहुत सी ऐसी मौतें हुई हैं, जहां पति-पत्नी
के निधन के बाद परिवार में बच्चे अकेले रह गए हैं।

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