गुडग़ांव, कोरोना महामारी की दूसरी लहर चल रही है। हालांकि
यह लहर अब धीमी पड़ती दिखाई दे रही है। कोरोना की पहली लहर में हालात कुछ
सामान्य हो जाने पर शिक्षण संस्थाओं को कोरोना से बचाव के लिए जारी
दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए खोल दिया गया था। निजी व सरकारी स्कूलों
को प्रतिदिन सैनिटाईज आदि भी कराया जा रहा था, ताकि कोरोना के संभावित
प्रकोप से छात्रों को बचाया जा सके, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर इतनी
जबरदस्त आई कि शिक्षण संस्थाओं को फिर से बंद कराना पड़ गया। कोरोना की
पहली लहर की चुनौती का सामना करने के लिए भारतीय शिक्षा जगत ने ऑनलाईन
शिक्षा का विकल्प खोज निकाला था, लेकिन दूसरी लहर में उस विकल्प को भी
विकसित करना मुश्किल हो रहा है। क्योंकि ऑनलाईन बैठने, बोलने, समायोजित
करने, तकनीकी सहयोग प्रदान करने वाले ही कोरोना से ग्रसित हो महीनों
कष्टकर जीवन बिताने को मजबूर हो रहे हैं। शिक्षण संस्थाओं में कार्यरत
शिक्षक व प्रोफेसर आदि भी बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमित हुए हैं।
शिक्षण संस्थानों में कार्य करने वाले शिक्षकों व अन्य कर्मचारियों को भी
कोरोना योद्धा के रुप में स्वीकार किया जाना चाहिए। जानकारों का कहना है
कि कोरोना काल में भारतीय शिक्षा जगत में कई नई चुनौतियां पैदा की हैं।
शिक्षण संस्थाओं के परिसरों को कोरोना संक्रमण से कैसे बचाया जाए यह भी
एक सबसे बड़ी चुनौती है। बड़े-बड़े शिक्षण संस्थान जिनके परिसर भी बहुत
बड़े हैं वहां स्वास्थ्य सुविधा, हैल्थ सेंटर आदि जैसी सुविधाएं भी
विकसित करनी होगी, ताकि कोरोना के बदलते स्वरुप का सामना किया जा सके।
केंद्र व प्रदेश सरकारों को कोरोना संक्रमण को ध्यान में रखते हुए शिक्षा
का बजट भी बढ़ाना होगा और लोगों को कोरोना के प्रति जागरुक करने के
साथ-साथ कोरोना से बचाव के लिए कोरोना वैक्सीनेशन की मुहिम भी चलानी
होगी। कोरोना के कारण जहां शिक्षण संस्थान व उनके परिसर बंद पड़े हैं,
छात्रावास खाली हैं, दूसरी लहर के धीमी पड़ जाने से धीरे-धीरे परिसर भी
खुलने शुरु हो जाएंगे। ऐसे में वहां पर कोरोना संक्रमण के प्रसार को
रोकना शिक्षण संस्थाओं के सामने एक बड़ी चुनौती होगी। जानकारों का यह भी
कहना है कि पूरी प्रतिबद्धता के साथ शिक्षा संस्थाओं को शुद्ध हवा, पानी
एवं संक्रमण मुक्त परिवेश बनाने पर जोर देना होगा। कहा भी जाता है कि
विपदाएं विकल्पों को सीमित एवं संकुचित कर देती हैं।
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