गुडग़ांव, कोरोना के कारण विश्व के देशों को भारी
समस्याओं का सामना करना पड़ा है। हमारा देश भी इससे अछूता नहीं रहा है।
पिछले डेढ़ वर्ष से शिक्षण संस्थाएं कुछ समय को छोडक़र बंद पड़ी हैं।
कोरोना के दौरान छात्रों की शिक्षा प्रभावित न हो, इसके लिए सभी देशों
में ऑनलाईन पढ़ाई शिक्षा का एक बड़ा विकल्प बनकर सामने आई है। भारत में
भी सभी शिक्षण संस्थानों द्वारा छात्रों को ऑनलाईन पढ़ाई कराई गई। उच्च व
मध्यम वर्ग के छात्र तो ऑनलाईन शिक्षा ग्रहण अवश्य कर सके, लेकिन ग्रामीण
क्षेत्र की बहुत बड़ी आबादी इस शिक्षा से वंचित अवश्य रही। क्योंकि
ग्रामीणों में एक बड़ी आबादी ऐसी है, जिसके पास स्मार्टफोन की सुविधाएं
उपलब्ध नहीं हैं। प्रदेश सरकारों ने भी इन ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों
के लिए स्मार्टफोन आदि की कोई विशेष व्यवस्था नहीं की। इस प्रकार ऑनलाईन
शिक्षा का लाभ ये छात्र बहुत कम ही उठा पाए। ऑनलाईन शिक्षा उपलब्ध कराने
के लिए विभिन्न निजी कंपनियों द्वारा ऐप भी उपलब्ध कराए गए। उन्हीं के
माध्यम से ऑनलाईन शिक्षा दी गई बताई जाती है। जानकारों का कहना है कि इन
कंपनियों ने ऐप उपलब्ध कराने के लिए अच्छी खासी फीस भी अवश्य वसूली होगी।
ऑनलाईन शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए कई कंपनियां भी इस दौरान सामने आई,
लेकिन डिजिटल विषमता का ध्यान किसी ने भी नहीं रखा। उनका कहना है कि इस
प्रकार से छात्र 2 श्रेणियों में विभक्त हो गए, यानि कि गांवों और शहरी
क्षेत्रों के छात्रों के रुप में। ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले
अधिकांश छात्रों की पहुंच स्मार्टफोन तक नहीं है। उनके अभिभावक परिवार का
खर्चा चलाएं या फिर महंगे स्मार्टफोन खरीदकर छात्रों को उपलब्ध कराएं ऐसा
संभव होता दिखाई नहीं दे रहा है, टेबलेट की तो बात ही छोड़ दें। अधिकांश
ऐप्स अंग्रेजी में ही हैं। ऑनलाईन माध्यम में हिंदी व दूसरी भारतीय
भाषाओं में इन ऐप्स को नहीं बनाया गया है। कोरोना काल में यह डिजिटल
विषमता अवश्य ही देखने को मिली है। उनका कहना है कि गरीब व मध्यम वर्गीय
अधिकांश छात्र शिक्षा के क्षेत्र में बहुत पिछड़ गए हैं, जबकि उन्हीं के
सहपाठी इस दौरान ऑनलाईन कक्षाओं से लाभान्वित भी हुए हैं। क्योंकि उनके
पास स्मार्टफोन, टेबलेट आदि सभी थे। जानकारों का यह भी कहना है कि कोरोना
के कारण शिक्षा ऑनलाईन होने की वजह से शिक्षा के क्षेत्र में विषमता न
केवल स्थायी हो रही है, अपितु इससे सामाजिक, आर्थिक विषमता और अधिक बढ़
रही है। उनका कहना है कि विश्व के कई देशों ने शिक्षा के क्षेत्र में
बढ़ती विषमता को नियंत्रित करने के लिए कई अनूठी पहल भी की हैं, लेकिन
भारत में इस प्रकार की कोई पहल नहीं की गई है। शिक्षा के क्षेत्र में
विषमता आज भी कायम है। उनका कहना है कि देश के वितीय संसाधनों का
इस्तेमाल इस तरह से होना चाहिए जो केवल उच्च वर्ग को संतुष्ट न करे,
अपितु जिससे आम आदमी की जरुरत पूरी हो। समय-समय पर ग्रामीण क्षेत्र के
छात्र-छात्राएं स्मार्टफोन आदि न होने की बात कहते रहे हैं। सरकार को इस
प्रकार की समस्या का समाधान समय रहते अवश्य ही निकालना चाहिए, क्योंकि यह
छात्रों के भविष्य से जुड़ा हुआ मामला है। हालांकि कोरोना महामारी की गति
अब पहले से कम हो गई है, इसलिए अधिकांश प्रदेशों में शिक्षण संस्थाएं भी
खोल दी गई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की छात्र-छात्राएं कोरोना महामारी के
प्रकोप से बचाव करते हुए स्कूलों में ही शिक्षा ग्रहण करने की ओर अग्रसर
होने शुरु हो गए हैँ। इससे उनकी डिजिटल विषमता भी कुछ हद तक समाप्त हो
जाएगी।
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