गुडग़ांव, किसी असहाय की आवश्यकतानुसार सहायता करना और सभी
से प्रेमपूर्वक मीठे बोल बोलकर उसके भीतर बैठे परमात्मा का विश्व रुप
दर्शन योग ही है। पांव में आई मोच और दिमाग की खराब सोच यदि ठीक नहीं हुई
तो प्रगति में बाधा अवश्य आएगी। यह कहना है सामाजिक संस्था मंथन आई
हैल्थकेयर फाउण्डेशन के संस्थापक गीता ज्ञानेश्वर डा. स्वामी दिव्यांनद
महाराज का। जो उन्होंने कोरोना वायरस का सामना कर रहे जरुरतमंदों को
खाद्य सामग्री वितरित करते हुए कही। उनका कहना है कि किसी जरुरतमंद की
अन्न, वस्त्र, औषधि आदि के रुप में की गई सहायता भी परमात्मा की
सर्वोत्तम पूजा है। आज भयंकर महामारी की कठिन परिस्थिति में ऐसी
पूजा-अर्चना का भाव आना बहुत ठीक है। भले ही मंदिरों के कपाट बंद भी
रहें, लेकिन जरुरतमंदों की सहायता करने से उनके भीतर बैठे देव के दर्शन
तो होते ही रहेंगे। हमारी गलत सोच ही तो हमारी प्रगति में बाधक बनी हुई
है। योग का अर्थ आसन व प्राणायाम ही नहीं, अपितु प्रभू के साथ युक्त होना
भी है। महाराज जी का कहना है कि यदि हम सबकी सोच सकारात्मक, आद्यात्मिक
हो जाए तो संपूर्ण विश्व के प्रत्येक प्राणी से जुड़ा जा सकता है। संस्था
का जरुरतमंदों को खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने का प्रयास निरंतर जारी
रहेगा।
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