गुडग़ांव,
पैरा मिल्ट्री फोर्स (अद्र्ध सैनिक बल) देश की
सीमाओं से लेकर देश की आंतरिक सुरक्षा व अति विशिष्ट
लोगों की सुरक्षा की
जिम्मेदारी संभाले हुए है। देश की सीमाओं पर तैनात
अद्र्ध सैनिक बल का
जवान दुश्मन की पहली व आखिरी गोली का शिकार बनता है।
केंद्र सरकार ने देश
पर प्राण न्यौछावर करने वाले इन जवानों व सैन्य जवानों
को मिलने वाली
सुविधाओं में भेदभाव किया हुआ है। इस भेदभाव को मिटाने
के लिए अद्र्ध
सैनिक बल व सामाजिक संस्थाएं भी आवाज उठाती रही हैं,
लेकिन सरकार ने अभी
तक कोई कार्यवाही नहीं की है। उक्त बात ऑल इंडिया एक्स
पैरा मिलिट्री
पर्सनल एसोसिएशन द्वारा रविवार को सिविल लाइन स्थित
पीडब्ल्यूडी रेस्ट
हाऊस में आयोजित पत्रकारवार्ता को संबोधित करते हुए
संस्था के राष्ट्रीय
अध्यक्ष केएस यादव ने कही। उन्होंने कहा कि संस्था
का प्रतिनिधिमंडल
सदस्यों की मांगों को लेकर वर्ष 2017 में तत्कालीन
गृहमंत्री राजनाथ सिंह
से भी मिल चुका है, उसके बाद भी उच्चाधिकारियों तक
से भी कई बार आग्रह
किया जा चुका है कि पैरा मिलिट्री के जवानों व उनके
परिवारों की समस्याओं
का समाधान कराया जाए, लेकिन सरकार ने आज तक भी इस ओर
कोई कदम नहीं उठाया
है। उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिलते रहे हैं। इनके लिए
लघु कैंटीन खोलने
के आदेश भी केंद्र सरकार द्वारा दिए जा चुके हैं, लेकिन
5 कैंटीन आज तक
भी नहीं खुल सकी हैं, जिससे अद्र्धसैनिक बलों के परिजनों
को रियायती दरों
पर सामान नहीं मिल पा रहा है। उन्हें बाजार से ही महंगी
दरों पर सामान
खरीदना पड़ता है। अद्र्धसैनिक कल्याण बोर्ड की स्थापना
का मामला भी लंबित
पड़ा है। संस्था के वरिष्ठ उपाध्यक्ष संतराम व महासचिव
केआर यादव का कहना
है कि संस्था ने केंद्र सरकार पर सेवानिवृत अद्र्धसैनिक
बलों के सैनिकों
के लिए भारतीय सेना की तर्ज पर वन रैंक वन पैंशन दिए
जाने की मांग भी की
है। उन्होंने मांग की है कि उन सभी सैनिकों को पुरानी
पैंशन मिलनी चाहिए,
जो वर्ष 2004 के बाद भर्ती हुए हैं। संस्था के पदाधिकारियों
का कहना है
कि देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए जब भी कोई अद्र्ध
सैनिक बल का जवान
अपना बलिदान देता है तो कहा जाता है कि जवान शहीद हो
गया। आम बोलचाल की
भाषा में तो शहीद बड़ा अच्छा लगता है, लेकिन सरकार
के यहां ऐसा नहीं है।
सरकार ने भारतीय सेना के जवानों व अद्र्ध सैनिक बल
के जवानों को मिलने
वाली सुविधाओं में भी भेदभाव किया हुआ है। उनका कहना
है कि सेना में
जवानों को पुरानी पैंशन योजना के तहत पैंशन दी जाती
है। उन्हें अद्र्ध
सैनिक बल के जवानों से अधिक वेतन मिलता है। 100 प्रतिशत
फैमिली क्वार्टर,
कैंटीन की बेहतरीन सुविधा, सभी ट्रेनों में स्पेशल
कोच, आर्मी स्पेशल
पेय, साल के दौरान समय-समय पर व लंबी छुट्टियां, लेकिन
अद्र्ध सैनिक बल
के जवानों को उक्त सुविधाओं में से अधिकांश सुविधाएं
नहीं दी जाती। उनकी
प्राथमिकता अपनी ड्यूटी करना ही होता है। उनका कहना
है कि अद्र्ध सैनिक
बलों में बीएसएफ, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, भारतीय
तिब्बल सीमा बल, सीमा
सशस्त्र बल व केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल शामिल हैं।
इन अद्र्ध सैनिक
बलों को देश की सीमाओं की रक्षा करने, नक्सल समस्या
से निपटने व जम्मू
कश्मीर में शांति व्यवस्था कायम करने, रामजन्म भूमि,
कृष्ण जन्म भूमि,
काशी विश्वनाथ मंदिर, द्वारिकाधीश मंदिर, सोमनाथ मंदिर
आदि की सुरक्षा की
जिम्मेदारी भी निभानी पड़ती है। 40 डिग्री माइनस तापमान
में भी ये बल देश
की चीन से लगी सीमा की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी संभालते
हैं। दुश्मन की
पहली गोली से आखिरी गोली का मुकाबला भी इसी बल के जवान
करते हैं।
उन्होंने सरकार से मांग की है कि अद्र्ध सैनिक बलों
के जवानों को देश
सेवा में अपनी जान न्यौछावर करने वाले जवानों को मृतक
कहा जाता है, जबकि
सैन्य जवानों को शहीद का दर्जा दिया जाता है, ऐसा भेदभाव
क्यों ? अद्र्ध
सैनिक बलों के जवानों को मृतक न कहकर उन्हें भी शहीद
का दर्जा दिया जाना
चाहिए। क्योंकि भारतीय सैन्य जवान व अद्र्ध सैनिक बल
के जवान एक ही
प्रकार के काम कर रहे हैं, यानि कि देश की सुरक्षा।
कई मामलों में तो इन
बलों का काम सेना से भी कठिन होता है। पत्रकारवार्ता
में संस्था के
विभिन्न प्रदेशों के पदाधिकारी भी शामिल हुए। उन्होंने
भी केंद्र सरकार
से मांग की कि अद्र्धसैनिक बलों की लंबित पड़ी मांगों
को शीघ्र पूरा किया
जाए।
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